पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७२६

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७०७ nurtuanthetron g -mtubirt भक्तिसुधास्वाद तिलक । यत्न से चाचाजी को खिचा लाइये, तो मेरे बड़े भाग्य उदय हों,"जाके ब्राह्मणों ने आपसे राजा की सब प्रार्थना सुनाई, और धरना दे उपवास किया। तब श्राप दयालु होकर आये । राजा ने सुना कि पुर के पास आप आ पहुँचे, तब वह सजलनेत्र भागे श्राकर सप्रेम चरणों में लपट गया, आपने हृदय में लगा लिया, परस्पर प्रेमाश्रुपात से भिगो दिये। राजा ने आपको सर्वस्व अर्पणकर जीवन पर्यन्त सरस हृदय से हरि- भक्ति की। सन्त के आश्रित होकर किसने कल्याण नहीं पाया ? श्रीअंगद भक्तजी के जितने गुण हम जानते थे उतने गान किये हैं। (१४८) श्रीचतुर्भुजजी। (५७८) छप्पय । (२६५) चतुर्भुज नृपति की भक्ति को, कौन भूपसरवर करें। भक्त आगमन सुनत सनमुख जोजन इक जाई । सदन आनिसतकार सहश गोबिन्द बड़ाई॥पाद प्रचालन सुहथ राय रानी मन साचें। धूप दीप नैवेद्य, बहुरि तिन आगें नाचें ॥ यह रीति करौलीधीस की, तन मन धन आगे धरै । चतुर्भुज नृपति की भक्ति कौन भूप सरवर करें। ११४॥ (१००) वात्तिक तिलक। "करौली” के राजा श्रीचतुर्भुजजी की लोकोत्तर भक्ति की समता, कौन राजा कर सकता है ? चार कोस पर श्रीहरिभक्त का आगमन सुन सम्मुख जाके घर लिवा लाते और भगवान के समान

  • ये कलियुग के श्रीमंगदजी हुए।

एक चतुर्भुजदास श्रीविठ्ठलनाथजी के शिष्य, कृष्ण दासजी के सप्तम पुत्र, बड़े सुकवि थे, व एक चतुर्भुज मिश्र भाषा दशमस्कन्घ श्रीमद्भागवत के कर्ता थे और एक चतुर्भुज श्रीवैष्णवदासजी को कहते है जिनकी कविता वल्लभीय मन्दिरो में गाई भी जाती है श्रीहरि- वंशजी के शिष्य ।।