पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७०० + + + श्रीभक्तमाल सटीक । सत्कार बड़ाई कर, सच्चे मन से, अपने हाथों से राजा रानी दोनों, चरण धो, चन्दन फूल माला धूप दीप नैवेद्य से पूजा आरती कर, फिर हरिभक्त । के आगे स्वयं नृत्य कीर्तन करते, और तन मन धन सब आगे रख अर्पण करते थे। भक्तगज करौली के अधीश की इस प्रकार की रीति थी, दूसरे किस नृपति की उपमा इसकी कही जा सकती है ? ।। (५७९) टीका । कवित्त । (२६४) ___पुर ढिग चारो ओर चौकी गखी जोजन पै, जो जन ही आवै तिन्है ल्यादत लिवाय के । मालाधारी दास मानि, आवै कोऊ द्वार जो पै, करै वही रीति सो सुनाई छप्प गाय कै॥ सुनी एक भूप भक्त निपट अनूप कथा, सबकों भंडार खोलि देत, बोल्यो धाय के । “पात्र औ अपात्र यो विचार ही जौ नाही, तो पै कहा ऐसी बात?" दई नेकु मैं उड़ाय के ॥ ४६५ ॥ (१६४) वातिक तिलक। राजा श्रीचतुर्भुजजी ने अपने पुर के चारों ओर चार चार कोस पर चौकी बैठा रक्खी थी कि "जो (भगवजन) कराठी तिलक धारण किये पाते थे उनको वहाँ ही सत्कारपूर्वक लोग रखते थे, तब राजा आप स्वयं जाके वहाँ से उनको सादर घर लिवा लाते थे॥ जो कोई माला तिलक धारणकरावे, उसको जैसा कि छप्पय में श्रीनामास्वामी ने कहा है उसी रीति से पूजा सत्कार किया करते थे। __ इस प्रकार आपकी अनूप कथा एक दूसरे राजा ने सुनी कि “कोई तिलकधारी जाय उसको अपना धनगृह (कोष) खोल देते हैं।" उसने कहा कि “जब उनको पात्रापात्र का विचार ही नहीं है, तब क्या भक्ति करते हैं ? किसी काम की बात नहीं कुछ योग्य बात नहीं।" इस प्रकार, बात की बात में, उसने उस प्रशंसा को चुटकियों में उड़ा दिया। (५८०) टीका । कवित्त । (२६३) भागवत गावे, भक्त भूप एक विप्र तहाँ, बोलिकै सुनावे "ऐसा मन जिन ल्याइयै । पावै पास कौन हृदय भौन में प्रवेश कर ? भार अनुराग कहा उर मघि आइये ?” ॥ करी लै परीक्षा भाट