पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७३३

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७१४ du -tutnpur श्रीभक्तमाल सटीक। (५८६) टीका । कवित्त । (२५७) "मेरतो " जनमभूमि, भूमि हित नैन लगे, पगे गिरिधारीलाल, पिता ही के धाम मैं । राना कै सगाई भई, करी ब्याह सामा नई, गई मति बूड़ि, वा रंगीले धनश्याम मैं ॥ भाँवर परत, मन साँवरेसरूप माँझ, ताँवरै सी आवे चलिवे को पति ग्राम मैं । पू पिता माता “पट आभरन लीजिये जू"लोचन भरत नीर कहा काम दाम मैं ॥ ४७१॥ (१५८) वात्तिक तिलक। परम भक्तिवती रूपवती श्री १०८ मीराबाईजी की जन्मभूमि जोधपुर राज्यान्तर्गत “मेरते"में थी, वहाँ के राव रत्नसेन की कन्या और जयमलजी की बहिन थीं। प्रेम से झूमकर आपके नयन श्रीगिरिधरलाल में लग के, पिता ही के गृह में पग गये, अर्थात् एक समय राजगृह के समीप किसी श्रीमान के गृह में दूल्हे को खिड़की से देख पाँच वर्ष की मीराजी गिरिधारीलाल के मंदिर में अपनी माता से पूछने लगी कि “मेरा दूल्हा कहाँ है ?"माता (कोई कोई कहते हैं "भावज" ने कहा ) ने इसकर श्रीगिरिधरलाल को बता दिया कि “यही हैं।" उसी क्षण से आपकी आँखें श्रीलालजी के प्रेम में रँग गई, हृदय में अनुराग और अपनपा हो गया। रात दिन एक पल न खोती थीं। साथ रहती थीं, पास सोती थीं।" "हैं तेरी ही सारी चीजें मेरी । तू मेरा है प्यारा मैं हूँ तेरी ॥" फिर जब योग्य अवस्था हुई तब चित्तौर (मेवाड़) के राना साँगा के पुत्र भोजराज से सगाई हुई । विवाह की सामग्री पिता ने नवीन की परन्तु आपकी मति तो उस रँगीले श्यामसुन्दर में डूब गई थी, इससे भाँवरी पड़ने लगी उस क्षण आपका मन श्यामस्वरूप ही में मग्न था॥ "मीरा, प्रभु गिरिधारीखाल सों करी सगाई हाल ॥" राठौर घराने के राजवश में जोधपुर राज्य के अन्तर्गत “मेरता" ग्राम में जन्म लिया था । "जयमल" की बहिन थी। कोई २ कहते है कि चित्तौरगढ़ मेवाड़ के "महाराना कुम्भ" के साथ इनकी शादी हुई थी। जो १४१८ ई० मे गद्दी पर बैठा था, बड़ा बहादुर था । श्रीमीराजीने वैराग्य को "घाँघरा लहँगा" विवेक ज्ञान को "सारी" प्रेम को "सारी का रग", भजन को "सुर्मा अंजन" गाया है।