पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७३५

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श्रीभक्तमाल सटीक । + MO M . - + ++++ ++++ + PAN... 4 . (५८८) टीका । कवित्त । (२५५) देवी के पुजायवे कौं, कियो लै उपाय सासु, वर पै पुजाइ, सुनि वधू पूजि भाखियै । बोली "जू विकायौ माथी लाल गिरिधारी हाथ, और कौन नव, एक वही अभिलाखिय" । “बढ़त सुहाग याके पूजे ताते पूजा करो, करो जिनि हठ सीस पायनि पै राखेय" । कही बार बार "तुम यही निरधार जानौ, वही सुकुमार जा पै वारि फेरि नाखिय"॥ ४७३ ॥ (१५६) . वात्तिक तिलक। मीराजी की सासु ने, देवी की पूजा का उपाय कर वर (अपने पुत्र) से पुजवाके फिर, आपको आज्ञा की कि "बहू ! तुम भी देवी की पूजा करो, प्रणाम करो।" आपने उत्तर दिया कि "मेरा माथा तो श्री- गिरिधरलालजी के हाथ विक चुका है और के सामने अब नहीं झुकता, केवल उन्हीं के प्रणाम की अभिलाषा युक्त रहता है।" फिर सासु कहने लगी कि “देवीजी की पूजा करने से भाग सुहाग बढ़ता है, इससे हठ मत करो, पूजा करके चरणों में सीस रखो। ___आप बोली कि “ मैं बारंबार कहती हूँ, श्राप यही निश्चय जानिये, और को कदापि सीस नहीं नवाऊँगी॥” • चौपाई। "धर्म नीति उपदेसिय तेही । कीरति भूति सुगति मिय जेही ॥" "केवल उन्हीं श्यामसुकुमार को मस्तक नवाऊँगी कि जिनके ऊपर तन मन सीस सब निवछावर करके फेंक दे चुकी हूँ, आप व्यर्थ हठ मत कीजिये ॥" सवैया। “पल काौँ सही इन नैनन के गिरिधारी बिना पल अंत निहारे। . जीभ कटै न भजे नंदनंदन, बुद्धि कटै हरिनाम बिसारे ॥ "मीरा" कह जरिजाहु हियौ पदकंज बिना पल अंतर धारै।" सीस नवे ब्रजराज बिना वह सीसहि काटि कुवाँ किन डारे॥ (५८९) टीका । कवित्त । (२५४) . तब तो खिसानी भई, अति जरि वरि गई, गई पति पास “यह