पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७१७ भक्तिसुधास्वाद तिलक। बधू नहीं काम की। अब ही जवाब दियौ, कियो अपमान मेरी, भागे क्यों प्रमान करे ?” भरे स्वास चाम की राना सुनि कोप कखो, धखौ हिये मारिबोई, दई ठौर न्यारी, देखि रीझीमति वाम की लालनि लड़ावै गुन गाय के मल्हावे, साधु संग ही सुहावै, जिन्हें लागी चाह स्याम की ॥ ४७४ ॥ (१५५) वात्तिक तिलक। श्रीमीराजी का उत्तर सुन, सासु अति क्रोधित हो, जर वर के, अपने पति के पास जाकर कहने लगी कि "यह बहू तो कुछ काम की नहीं है, अभी ही उसने मुझे उत्तर दिया और अपमान किया, तब आगे मेरे वचनों का क्या प्रमाण करेगी?" ऐसा कह लोहार की माथी सरीखा श्वास भरने लगी। रानी की बात सुनकर, राना ने, वैष्णव शाक्न भेद विरोध प्रभाव, तथा रजोगुण तमोगुण सुभाव से, अतिक्रोधित हो. श्रीमीराजी को मार ही डालना निश्चय कर, अपने अंतःपुर से न्यारा एक गृह आपके रहने को दे दिया। पाप एकांत देख बड़ी प्रसन्न हुई, अपने गिरिधरलाल को अष्टयाम लाड़ लड़ाती अति प्यार से सेवा पूजा भजन गुन गान किया करती और श्रीश्यामसुन्दर के सनेही संतों का संग छोड़ और कुछ आपको अच्छा नहीं लगता था॥ "मीराजी के लौकिक पति, राना के कुमार ने दूसरा विवाह कर लिया और इस संसार से भी चल दिया। श्रीमीराजी पांवों में नूपुर बांध श्रीगिरिधरजी के सन्मुख अपने पद गाया और नाचा करती । साधुओं की सेवा सत्कार भी भली भाँति से करतीं।" चौपाई। सीतापति सेवक सेवकाई । कामधेनु सत सस्ति सुहाई ॥" माता पिता के दिये धन की त्रुटि तो थी ही नहीं। (५९०) टीका । कवित्त । (२५३) आय कै ननँद कहै “गहै किन चेत भाभी ? साधुनि सों हेतु मैं जवाब"-=-12-उत्तर।।