पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७४०

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M umAMAMAIRAAMANANmanarthasee - भक्तिसुधास्वाद तिलक । ७२१ उसको हरि सम्मुख कर दिया । सन्तों की मण्डली को श्रीमीराजी के इस आचरण और चरित्र से बड़ा ही हर्ष पास हुअा, और आपका यश चारों ओर बहुत फैल गया । आपके हृदय में भक्तिप्रवाह के साथ रसमयी कविता का श्रोत भी आ मिला, आपके बहुत पद हैं । राना ने आपके मार डालने के लिये सर्प आदि प्रयोग भी किये पर न श्राप मरी ही, और न राना की आँखें ही खुली। (५९४) टीका । कवित्त । (२४९) रूप की निकाई भूप “अकबर" भाई हिये लिये संग तानसेन देखिचेको आयो है। निरखि निहाल भयो, छवि गिरिधारीलाल, पद सुखजाल एक, तब ही चढ़ायो है । वृन्दावन आई, जीवनसाँई ज़ सों मिलि झिली, तिया मुख देखिये को पन लै छुटायो है । देखी कुंज कुंज लाल प्यारी सुखपुंज भरी धरी उर माँझ, पाय देस, वन गायो है ।। ४७६ ॥ (१५०) वात्तिक तिलक। __ अद्भुत प्रेम और आपके रूप की सुन्दरता सुनके अकबर बादशाह के मन में छटपटी सी लगी, सो एक दिन वह अपना ऐश्वर्य छिपाके तानसेन गायक के साथ आपके दर्शन को पाया। श्रीगिरिधरलाल के सहित मीराबाई का सुन्दररूप और भक्ति देख कृतार्थ हुशा। उसी समय तानसेन ने एक नवीन पद रच, गाकर आपको अर्पण किया। फिर आपकी भक्ति की प्रशंसा करते दोनों चले गए। कहते हैं कि एक बहु- मूल्य महाप्रभायुक्त हार भक्तपणा श्रीमीराजी के करकमलों में गुप्तभेष अकवर ने बड़ी श्रद्धा, नम्रता और आदर से दिया । धाम प्रेम से वृन्दावन आई । “मीरा प्रभु गिरिधर के कारण जग उपहास सहाँगी।" प्रशंसा सुन, एक दिन आप श्रीजीवगुसाइजी के मिलने को गई, गुसाईजी ने कहला भेजा कि "मैं स्त्री का मुख नहीं देखता, श्रीमीराजी ने उत्तर दिला भेजा कि "मैं तो भाज तक पुरुष एक श्रीगिरिधरलालजी ही को जानती थी और सब जीवमात्र को स्त्री