पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७४७

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७२८ श्रीभक्तमाल सटीक । कि "ये नेत्र फटने पर फिर ज्योतियुक्त नहीं होनेके” परंतु ब्राह्मण ने बड़ा इठ किया। उसके हठ का सारांश देख, शिवजी ने प्रसन्न होकर थाज्ञा दी कि “जायो, श्रीरामभक्त पृथ्वीराज के अंग पोंछने के अंगोछे से नेत्रों को पोंछो, खुल जायेंगे।" आकर उस ब्राह्मण ने वृत्तान्त आपसे कहा । प्रथम तो आप ब्राह्मण के गौरव से अपने अंग पोंछने का वच देने में डरे। तथापि नवीन वन मँगा, अपने अंग में छुला, विष को दिया । ब्राह्मणजी ने आँखें पोंछी, तत्काल नत्र खुल गये। ब्राह्मणजी सुखी हुए। भक्ति की महिमा जानी। सब लोग यह कौतुक देख पृथ्वीराज के प्रभाव से सरस हो, जयजयकार करने लगे। पृथ्वीराज की भक्ति की जय ।। (६०२) छप्पय । (२४१) भक्तनि को आदर अधिक, राजबंश में इन कियौ। लघु, मथुरा, मेरता भक्त अति जैमल पोषे । टोड़े भजन निधान रामचंद्र हरिजन तोषे॥अमराम एक रसहिं नेम नीवाँ के भारी । करमसी, सुरतान, भगवान, बीरमं भू- पति व्रतधारी॥ईश्वर, अखैराज, रायमलें, कन्हेरे, मधु- करें नृप, सरवसु दियौ।भक्तनि को आदर अधिक, राज- वंश में इन कियौ ॥११७॥ (६७) वात्तिक तिलक । राजवंशियों में इतने राजाओं ने भगवद्भक्तों का अति आदर सेवा सत्कार किया। मथुरा में श्रीलघुजनजी, मेरता में श्रीजयमलजी ने भक्तों को प्रति पोषण किया । टोड़े में भजननिधान श्रीरामचन्दननजी ने हरिजनों का अति संतोष किया। श्रीनीवाजी ने तथा श्रीअभयरामजी ने साधु- सेवा का भारी नेम एकरस निबाहा । करमसी में श्रीभगवावजी, और सुरसान में बीरमजी, ये दोनों भूप साधुसेवाव्रत धारण करने वाले हुए श्रीईश्वरजी, श्रीअक्षयराजजी, श्रीरायमलजी, श्रीकान्हरजी,