पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७४८

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AthAmer+at+4- - 14-094MA Nupurnima भक्तिसुधास्वाद तिलक । ७२९ श्रीमधुकरसाहजी, इन राजाओं ने भगवद्भक्तों को अपना सर्वस्त्र दिया और जग में यश लिया। १ श्रीलघुजनजी ७ श्रीवीरमजी २ श्रीजयमलजी ८ श्रीईश्वरजी ३ श्रीरामचन्द्रजनजी श्रीअक्षयराजजी ४ श्रीनीवांजी १० श्रीरायमलजी ५. श्रीअभयरामजी ११ श्रीकान्हरजी ६ श्रीभगवानजी १२ श्रीमधुकरसाइजी श्रीसीतारामीय मुशी तपस्वीरामजी ने लिखा है कि किसी बृद्ध भक्तमाली तथा शुद्ध भक्तमाल की प्रति के न मिलने से "नामों का ठीक पता लगाना बड़ा ही कठिन है।" श्रीराधाकृष्णदासजी ने भी लिखा है कि "खेद का विषय है कि मुझे श्रीहरिश्चन्द्र जी की लाइब्रेरी में और काशी-नागरीप्रचारिणी सभा मे भी कोई शुद्ध प्रति इसकी (नाभाजी कृत भक्तमाल की) नहीं मिली" इससे-नामों के पता लगाने में बहुत कुछ कठिनता पड़ी। श्रीराधाकृष्णदासजी ने (१)"व्यासजी की वाणी" से छब्बीस २६,(२) "भगवत्रसिकजी की भक्तनामावली" से एकसौ उनतीस १२९,(३) "मलूकदासजी के ज्ञानबोध से छयासठ ६६, (४) "नागरीदास के पद प्रसगमाला" से छत्तीस ३६, और (५) "ध्रुवदासजी की भक्तनामावली" से एकसौ बाईस १२२ नामोंकी नामावलियाँ लिखी है इसके लिए धन्यवाद देता हूँ। पर उन्होंने भी श्रीभक्तमाल को नामावली नहीं ही लिखी। (१५१) श्रीजयमलजी *। (६०३) टीका । कवित्त । (२४०) मेरते बसत भूप, भक्तिको सरूप जान, जैमल अनूप जाकी कथा कहि आये हैं। करी साधुसेवा रीति मीति की प्रतीति भई नई एक सुनौ हरि कैसे लड़ाये हैं। नीचे मानि मंदिर सो सुंदर विचारी वात, छात पर बंगला के चित्र लै बनाये हैं। विविधि विछौना सेज राजत उदौना पानदान धरि सौना जरी परदा सिवाये हैं ॥ ४८६ ।। (१४३) बात्तिक तिलक । श्रीमीराबाईजी के भाई श्रीजयमलजी राजा मेरते (मीस्थ) में वसते, भक्ति का अनुप रूप जानते थे, जिनकी कथा प्रथम कहते हैं कि श्रीजयमलजी श्रीमीराबाईजी के छोटे भाई थे। इन्होने मीरथ (मेरठ) नगर को छोटी मथुरा ही बना रक्खा था ।।