पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७६

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mmitRIHIRAQup114440-100 - -- ...-- - - - भक्तिसुधास्वाद तिलक । सो विशेष जानो अभै को विश्वास है ॥ गोपद सो है हैं भवसागर नागर नर जोपै नैन हिय के लगावै, मिटै त्रास है कपट कुचाल मायावल सबै जीतवे को, “दर" को दरस कर, जीत्यो अनायास है । (६१३) तिलक । । “जव (यव) चिह्न के धारण का अभिपाय सुनो कि ध्यान करनेवाले को यह चिह्न सर्व विद्या सर्वसिद्धियां देता है, और सुमति सुगति सुखसम्पति का निवासस्थान है, इससे, ध्याता को भी इन गुणों का घर ही कर देता है। कलि की कुचालों को देख देख के भक्तजन क्षणमात्र में भय-ग्रसित हो जाते हैं, उनको विशेष करके अभयत्व का विश्वास दिलाने के लिये प्रभु ने "ध्वजा" चिह्न को धारण किया है । और “गोपद चिह्न धारण करने का हेतु यह है कि जो प्रवीण (नागर) जन इसका ध्यान करेगा तिसको अपार भवसागर गोपद के सरीखा सुलभ हो जायगा, सो जो कोई जन । अपने हृदय के नेत्रों को इस "गोपद” के ध्यान में लगावै, तो उसको ही भवसागर में डूबने आदि का डर मिट जावै । दंभ कपट कुचाल इत्यादिक माया के जालों को विना प्रयास जीतने के हेतु “शंख” चिह्न को श्री प्रभु ने धारण किया तिसको दर्शन करके भक्तजनों ने उक्त मायाजाल को विना प्रयास ही जीत लिया, क्योंकि शंख विजयकारी शब्द संयुक्त ई है। इस सहायतारूप कृपा की जय ॥ (२३) टीका । कवित्त । (८२०) . कामह निशाचर के मारिख को “चक्र" धखो, मङ्गल कल्याण हेतु स्वस्तिक हूँ मानिये । मंगलीक "जम्बूफल” फल चारिहूं को फल, कामना अनेक विधि पूर्ण, नित ध्यानिये ॥ “कलश" "सुधा को सर" भखो हरि भक्ति रस, नैनपुट पान कीजै, जीजै मन आनिये । भक्ति को बढ़ावे भी घटावे तीन तापहूं को, "अर्धचन्द्र धारण ये कारण हैं जानिये ॥१७॥ (६१२) तिलक । कामरूपी निशाचर के वध के लिये “चक्र" चिह्न को धारण किया, मङ्गल और कल्याण के निमित्त "स्वस्तिक" रेखा का धारण मानिये ।