पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

4 . श्रीभक्तमाल सटीक । पौत्र की प्रेमप्रतिज्ञा सुन श्रीमालरनजी ने उठके छाती से लगाया, अत्यंत सुख को प्राप्त हुए । तदनंतर शरीर त्यागि प्रभु को प्राप्त हुए। श्रीकिशोरजी ने वैसा ही पन को निवाहा, श्रीयुगल सर्कार के गुण गान करते प्रेम में मति भीग गई, भक्ति को विस्तार किया ॥ थोड़ी ही अवस्था में अनुराग से हृदय छक गया, आपकी दशा देख देख सन्तों के समाज रीझके बड़ा सम्मान किया करते थे। श्रीकिशोरसिंह की जय ॥ (६१४) छप्पय । (२२९) खेमालरतन राठौर के, सुफल बेलि मीठी फली। हरीदास हरिभक्त भक्ति मंदिर को कलसौ । भजन भाव परिपक्क, हृदै भागीरथ जल सौ॥ त्रिधा भाँति अति अनन्य राम की रीति निबाही । हरि गुरु हरि बल भाँति तिनहि सेवा दृढ़ साही ॥ पूरन इन्दु प्रमुदित उदधि, त्यो दास देखि बाढै रली । खेमालरतन राठौर कै, सुफल बेलि मीठी फली ॥ १२२* ॥ (६२) वात्तिक तिलक। राठौर श्रीखमालरनजी की मनोरथ पोलि, भक्तिभूमि में अति मिष्ट फल फली, श्रीहरिजी के और इरिदासों के ऐसे भक्त ( इनके सन्तान) हुए कि श्रीहरिनिवास भक्तिरूपी मन्दिर के मानो कलश हैं । भजन और भावना से परिपक्क हृदय ऐसा निर्मल हुआ कि मानो गंगाजी का जल है, मन वचन कर्म तीनों से प्रभु में अनन्य होकर श्रीराम- स्यनजी की रीति का निर्वाह किया। श्रीहरिरूपी गुरु का बल आपको श्रीहरि ही के समान था, दोनों की दृढ़ मेवा राजऐश्वर्य से की ओर

  • कोई महात्मा कहते है कि यह छप्पय राजकुमार श्रीकिशोरसिहजी ही के वर्णन मे

है और कोई ऐसा भी कहते है कि यह वर्णन श्रीक्षेमालजी के पोते ( रामरयनजी के भतीजे, वा किशोरजी के छोटे भाई ) नाम श्रीहरिदासजी का है । सब बात युक्त है, वापके सतान ही का यश है ।।