पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७७

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५८ Marathi -NAIMER MAMMINManantarMari श्रीभक्तमाल सटीका "जम्बूफल" को मङ्गलों का करनेवाला, तथा चारों ही फलों का फलरूप और सब मनकामनाओं को नानाप्रकार से पूरा करनेवाला, जानके नित्य ध्यान कीजे॥"अमृत का घड़ा" और "अमृत का इद" (तालाब) इसलिये धारण किये कि इन्हें ध्यान करनेवाले के हृदय में भक्तिरस भरें, और मानसिक नयनपुट से पीकर परम अमरत्व प्राप्त हो ॥ “अर्धचन्द्र" चिह्न के धारण के कारण ये जानिये कि, इसके ध्यान से तीनों ताप घटते हैं और प्रेमाभक्ति बढ़ती है ।। (२४) टीका । कवित्त । (८१९) विषया भुजङ्ग बलमीक तनमाहि बसै, दास को न डस, ताते यत्न अनुसलो है। "अष्टकोन" "षटकोन" औं "त्रिकोन" जंत्र किये जिये जोई जानि जाके ध्यान उर भखो है ।। "मीन" "विन्दु" रामचन्द्र कीन्यों वशीकर्ण पायँ ताहिते निकाय जन मन जात हलो है । संसारसागर को पारावार पावै नाहि, “ऊर्ध्वरेखा" दासन को सेतुबन्ध कसो है ॥१८॥ (६११) तिलक । शरीररूपी बल्मीक (बामी वा बामीठ) में कामादिक विषयरूपी सांप जो वास करता है, सो जिसमें भक्तों को न काटखाय, इसलिये प्रभु ने ये यत्न किये कि "अष्टकोण", "षटकोण" और "त्रिकोण" यंत्रों को धारण किया। जिसने इस बात को जानके इन रेखाओं का ध्यान हृदय में किया, सोई जन विषय-भुजंग से बच के अखण्ड जिया ॥ और श्रीरामचन्द्रजी ने, अपने पाय (पदपङ्कज) में “मीन" और "विन्दु" चिह्नों को बशीकरण यन्त्र बनाके धारण किया, क्योंकि मीन जगत वशीकारक “कामदेव" का ध्वजा है तथा "विन्दु" (वेदी) भी वशीकरण तिलकरूप है। इसी से,श्रीप्रभुचरण चिन्तवन करने हारे समस्त जनों के मन हो जाते हैं अर्थात् प्रभु के विवश होते हैं ।अपार संसाररूपी समुद्र का पार कोई नहीं पा सकता, अतएव ऊर्ध्वरेखारूप सेतु (पुल) बाँधा है कि जिसमें ध्यानारूढ़ होके, मेरे भक्त, सुगम ही, संसारसागर उतर जावें॥