पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७६०

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+ + Mod Mmt + भक्तिसुधास्वाद तिषक। भक्ति विसतारिये । भाज्यौ धन लैक काऊ, धनी पाछे पखो सोऊ, श्रानिकै दबायौ, वैठि रह्यो न निहारिये ॥ निकसी पुरान चात, करें नयो गात दिक्षा, शिक्षा सुनि शिष्य भयौ, गह्यौ यो पुकारियै । कहें "याजनम मैं न लियौं कछु,” दियो फारौ हाथ ले उवाखौ प्रभु, रीति लगी प्यारियै ॥ ४६४ ॥ (१३५) वात्तिक तिलक! श्रीचतुर्भुजजी वहाँ रहके नाना प्रकार के भोग श्रीभगवत् को लगाते और संतों को पवाते, लाड़ लड़ाते, श्रीभागवत कथा गानकर आपने सब लोगों में भावभक्ति का विस्तार किया। एक दिन एक उचक्का किसी का धन लेकर भागा, वह धनी भी उसके पीछे पीछे दौड़ा, उचक्का पापकी कथा में घुसकर बैठ गया। धनी ने निहारा देखा, पर पाया नहीं। - आपकी कथा में पुराणान्तर की यह वार्ता निकली कि “जो कोई भगवत् मंत्र की दीक्षा लेता है, उस दिन से उसका दूसरा नया जन्म हो जाता है। ऐसा उपदेश सुन वह चोर वहाँ ही आपका शिष्य हो गया, और उसने पूजाकर वह द्रव्य पुस्तक पर चढ़ा दिया। जब श्रोता उठे तब धनी उचके को पकड़ पुकारके कहने लगा "यह अभी मेरा धन लेकर भाग आया है" - इसने कहा "मैंने इस जन्म में किसी का कुछ भी नहीं चुराया," निदान उसने लोहे का फार तपाया हुया हाथ में लेकर, विश्वासपूर्वक कहा कि "जो मैं इस जन्म में कुछ भी न चुराया हो, तो मेरे हाथ न जलें।" प्रभु ने उसको बचा दिया, हार्थों में उष्णता तक भी न आई। इसके विश्वास प्रतीति की रीति मुझे अति ही प्यारी लगी है। (६१८) टीका । कवित्त । (२५५) राजा झूठ मानि कह्यो "करो विन प्रान वाको, साधु ये विराज मान ले कलंक दियौ है" । चले ठौर मारिवकों, धारिखकों सके कैसे, ___ "राममत्रोपदेशेन माया दुरमुपायता । कृपया गुरुदेवस्य वित्तीयं जन्म कथ्यते ॥१॥ पितृगोत्री यथा कन्या स्वामीगोत्रेण गोत्रिका 1 श्रीरामभक्तिमात्रेणाच्चुतगोत्रेण गोत्रकः ।। २॥" इति नारदपचरात्रै प्रमाणम् ॥