पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७६२

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AmeAndRAM . - 1 004++ भक्तिसुधास्वाद तिलक । ७४३ वाली बहुत सी तोड़ ली। खेत रखानेवालों का मुख सूख गया, हल्ला करने लगे। किसी ने जाके आपसे पुकार किया कि “साधु सब खेत की बाली तोड़े लेते हैं और कहते हैं कि 'यह तो हमारा ही हैं।" आप सुनते ही प्रेमानन्द से पूर्ण हो, बहुत सा मीठा लेकर आये और प्रसन्न मुख से कहने लगे कि “आज मैं धन्य हुअा, मुझे संतों ने अपना लिया, अपना जाना।" आपका हृदय प्रेमानंद से भीग गया फिर गुड़ दे, पाली पवाके गृह में लिया ले गये, नाना प्रकार के भोजन कराये, फिर भक्तिमार्ग की चर्चा सत्संग कर, परस्पर, प्रेमरस पीके छक गये ॥ (१५८) श्रीकृष्णदासजी चालक *। (६२०) छप्पय । (२२३) चालक की चरचरी,चहँदिशिउदधितलौअनुसरी॥ सक्रकोप मुठिचरित, प्रसिध, पुनि पंचाध्याई। कृष्ण- रुक्मिनी केलि, रुचिर भोजन विधि, गाई ॥ "गिरिराज- धरन" की छाप, गिरा जलधर ज्यों गाज।संत सिखंडी खंड हृदै आनँद के काजै॥जाड़ा हरन जग जड़ता कृष्णदास देही धरी। चालक की चरचरी, चहूँ दिशि उदधि अंत लौ अनुसरी ॥१२४॥ (60) वात्तिक तिलक। चालक की रचना चरचरी छन्द की श्रीकृष्णदासजी की कविता चारों दिशाओं में वरंच समुद्रों के तट पर्यंत विख्यात हुई । उसी छन्द से इन ग्रंथों की रचना की,शककोप से जो हुा प्रसिद्ध "गोवर्धनचरित्र," और "रामपंचाध्याई," "कृष्णरुक्मिणीकलि" तथा रुचिर "भगवद्भोजन- विधि" इत्यादि। ___ और, अपने काव्य में "गिरिराजधरन" की छाप रक्खा करते थे। आपकी वाणी मेघ की गर्जन समान है । संत समाज उसको सुन श्रीरामासजी और श्रीकृष्णदासजी कई हुए है।