पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७६५

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७४६ -- - .. - ...-1. .. चन- - 4 . m + + + + ++ श्रीभक्तमाल सटीक। रित बेर सहस पायनि लै धायौ॥अंगीकार का अवधि यह, ज्यों आख्या माता जमल । (श्री) मदनमोहन सूरदास की,नाम शृंखला जुरी अटल ॥१२६॥(८८)' वात्तिक तिलक । श्रीमदनमोहन और सूरदास के नाम की श्रृंखला अचल जुट गई, अर्थात् आप थे तो नेत्रयुक्त, परंतु नाम सूरदास था सो जहाँ पर सूरदास नाम है वहाँ मदनमोहन नाम के साथ ही है । __आप गानविद्या और काव्य में अति प्रवीण और शुभ गुणों की राशि ही थे। सबके साथ सुहृदता रखते, सखी के अवतार ही थे। श्रीराधाकृष्ण आपके उपास्य, आप रहस्यसुख के अधिकारी थे। नव रसों में जो मुख्य श्रृंगाररस, उसको बहुत प्रकार से गान किया। आपकी कविता ऐसी फैलती थी कि जहाँ मुख से निकली, कि मानों सहस्त्र चरणों को धारण कर चारों दिशाओं में दौड़ गई। सो यह प्रभु के अंगीकार करने की सीमा है। ऐसी प्रभुके और आपके नाम की आख्या हुई कि जैसे जमल भ्राता अश्विनीकुमार सदा इक्ट्ठे रहते हैं। दो० "भली भाँति सेए विपिन, तजि बंधान सों हेत । सूर भजन में एकरस, छाँड्यौ नाहिन खेत ॥" (६२४) टीका । कवित्त । (२१९) सूरदास नाम नैन कंज अभिराम फूले, झूले रंग पीके नीके जीके और ज्याये हैं । भये सो अमीन * यो सँडीले के नवीन रीति प्रीति गुड़ देखि दाम बीस गुने लाये हैं। कही पूवा पावै आप मदनगोपाल लाल परे प्रेम ख्याल लादि छकरा पठाये हैं। आये निसि भये स्याम कियौ आज्ञा जोग बैंक अबही लगायौ भोग जागे फिरि पाये हैं ॥ ४६८ ॥ (१३१) वात्तिक तिलक। आपका नाम "सूरध्वज" था, परन्तु काव्यों में “सूरदास मदन "अमीन"UM-रक्षक, थाती रखनेवाला, अधिकारी ।।