पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भक्तिसुधास्वाद तिलक । ५९ +RAJMAHENign (२५) टीका । कवित्त । (८१८) . "धनु” पद माहिं धखो, हो शाके ध्यानिन को, मानिन को माखो मान, रावणादि साखिये। “पुरुष विशेष" पदकमल बसायो राम हेतु सुनो अभिराम, श्याम अभिलाखिये ॥ सूधो मन सूधी वान सूधी करतूति सब ऐसो जन होय मेरो, याही के ज्यों राखिये। जोपै बुधिवन्त रसवन्तरूप सम्पति में, करि हिये ध्यान हरिनाम मुख भाखिये ||१६||08 (६१०) तिलक। श्रीधनुधारीजी ने पदकंज में "इन्द्रधनुष” का चिह्न धारण करके ध्यान- धारीजनों का शाके नाश किया, क्योंकि महामानी रावणादिकों के मान और प्राण का क्षय, धनुष ही से किया, सो वे मरके साक्षी दे रहे हैं कि हम लोग भक्कद्रोही थे तिन्हों को श्रीराम धनुष ने नाश किया, तैसे ही, "इन्द्र- धनुष" चिह्न ध्यानियों के समस्त शत्रुओं का नाश करके विशोक करेगा। "पुरुष" नाम चिह्न को अपने पदकमल में बसाया, तिसका अति सुन्दर कारण सुनके श्यामसुन्दर सियावर श्रीराम की अभिलाषा कीजै, श्रीप्रभु 'इस चिह्न से यह जानते हैं कि जोहमारा जन सरल(सूधा) मनवाला, सरल वचनवाला, सरल कर्मवाला और इस चिह्न का ध्यान करनेवाला हो, अतिसको इसी चिह्न के समान मैं अपने पद में अर्थात् पद प्रेम रूपी स्थान में तथा (अन्त में) परमपद श्रीसाकेत धाम में रतूंगा ॥जो जन कदा. चित् ऐसे बुद्धिमान हों, तथा श्रीरामरूप सम्पत्ति में रस (स्नेह) वन्त हो, सो समस्त श्रीचरण चिह्नों का ध्यान करके श्रीसीताराम नाम ही मुख से निरन्तर कहें ।

--

- - -- (२६) छप्पय । (८१७) विधि, नारद, शङ्कर, सनकादिक, कपिलदेवें, मनु- भूपं । नरहरिदास, जनक, भीषम, बलिं शुकै मुनि, धर्म स्वरूप ॥ अंतरंग अनुचर हरि जू के जो इन को यश गावै। आदि अन्त लौ मङ्गल तिनको स्रोता वक्ता सि. १५ वे से १९वे तक, इन पांच कवित्तों को किसी-किसी ने "क्षेपक" बताया है।