पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७७२

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । + न - mummunintenantaraamanna - वात्तिक तिलक । उसके नेत्रों में जल बहने लगा, हाथ जोड़ बोला कि "मैंने जो पुकारके चरणामृत लेने को कहा सो बड़ा दुःख हुआ, आप महात्मा हैं, मुझे आपको चरणामृत देने की योग्यता नहीं है।" निदान आपने अत्यन्त हठ करके ले ही तो लिया, क्योंकि साधुता में अति प्रवीण थे, विचार किया कि श्रीरामजी को भक्ति ही प्रिय है, इससे जाति पाँति को प्रेम के प्रवाह में बहा दिया ॥ __यह बात सब नगर में फैल गई, सब विमुख लोग उसकी जाति का नाम लेकर राजा के पास आपकी निन्दा करने लगे। सुनके वह वात राजा को भी नहीं अच्छी लगी, हृदय में प्रभाव आ गया। एक दिवस श्रीमुरारिदासजी राजा के देखने को गये, देखें तो राजा का पहिला प्रेमरंग सब चला गया। आपने जाना कि वही बाल है। फिर स्थान में प्राके और लोगों से भी सुना कि आपके चरणामृत लेने की निन्दा सब नगर में तथा राजा के हृदय में छा रही है ॥ . (६३३ ) टीका । कवित्त ( २१०) __ गए सब त्यागि, प्रभु सेवा ही सो राग जिन्हैं, नृप दुख पागि, गयो, सुनी यह बात है । होत हो समाज, सदा भूपके बरष माँझ, दरस न काहू होत, मान्यौ उतपात है ॥ चलेई लिवाइवे की जहाँ श्रीमुरारि- दास; करी साष्टांग रास नैन अनुपात है। मुखहूँ न देखे वाको, विमुख कै लेखे, अहो पेखे लोग कहै यह गुरु शिष्य ख्यात है ॥५०५॥ (१२४) ____ वात्तिक तिलक । आप विरक्त तो थे ही, श्रीसीतारामजी की सेवा भजन छोड़ और किसी वस्तु में अनुराग न था, इससे सब छोड़छाड़ किसी और स्थल में जा विराजे । श्रापका चले जाना सुन राजा दुखित हुा । राजा के यहाँ प्रतिवर्ष संतन का समाज उत्सव होता था सो आपके चले जाने से किसी संत का दर्शन भी नहीं हुा । तब राजा बड़ा उत्पात मान जहाँ श्रीमुरारिदासजी विराजे थे वहाँ श्रापको लिवा लाने के लिये गया, और साष्टांग प्रणामकर हाथ जोड़ खड़ा हुआ । राजा के नेत्रों से प्रेमाश्रु की धारा बहने लगी। आपने भक्ति विमुख जान उसका मुख भी न देखा