पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७७५

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mmmmmmm....श्रीभक्तमाल सटीक । -+ + + + + + + + + + + + + - - सबको बड़ा ही दुःख हुश्रा, कहने लगे "हाय अब श्रीमुरारिदासजी को कहाँ पा" श्राप तो श्रीरामजी के समीप प्राप्त हुए । सब इस सत्य प्रेम की जै जैकार करने लगे। (१६३) भक्तमाल-सुमेर गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी। १ कलि । संवत् । स ई० । शाके जन्म ४६३३१५८ १५३२ ५४५४ परलोक । ४७२१ । १६८० १६२३ १५४५ (६३६) छप्पय । (२०७) कलि कुटिल जीव निस्तारहित, वाल्मीक "तुलसी' भयौ ॥ त्रेता काब्य निबंध करिव सत कोटि रमायन । एक अचर उद्धरै ब्रह्महत्यादि परायन ।। अव भक्लनि सुखदैन वहरिलीला विसतारी। रामचरन रस मत्त रटत अह निसि व्रतधारी ॥ संसार अपार के पार को सुगम रूप नवका लयौ । कलि कुटिल निस्तारहित, वाल्मीक "तुलसी" भयौ ॥ १२६॥ (८५) वात्तिक तिलक । कलियुग में कुटिल जीवों को भवसिंधु से निस्तार करने के हेतु, श्री. वाल्मीकि मुनिवर श्री १०८ तुलसीदासरूप से अवतीर्ण हुए, त्रेतायुग में शतकोटि श्रीरामायण काव्य-निबंध आपने किये थे कि जिन श्रीरामा- यणों के एक एक अक्षर ऐसे पुनीत प्रभाववाले हैं कि उनका उच्चारण पं० शिवलाल पाठकजी कहते हैं कि श्रीगोस्वामीजी संवत् १५५४ मे प्रगट हुए, पाँच वर्ष की अवस्था में गुरु से रामचरित श्रवण किया, ४० वर्ष सन्तो से सुन सुनकर, ३८ वर्ष मनन किया, तब ७८ वर्ष की अवस्था सं० १६३१ में मानस रचा, सं० १६८० में श्रीराम- धाम पधारे ।।" (१) प्रमाण भविष्यपुराणे ॥ बाल्मीकिस्तुलसीदास' कलौ देवि ! भविष्यति । रामचन्द्र- कथां साध्वी भाषाल्पां करिष्यति ॥१॥ (२) प्रमाण श्रीरामरक्षास्तोत्र ॥ "चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । एकैकमभर पुसी महापातकनाशनम्" ॥ १॥