पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७८३

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m 4mau -- - - + 1 9...-10-Jun- ७६४ श्रीभक्तमाल सटीक । इस राजमाधुरी का दर्शन श्रीहनुमानजी कृपालु ने कराके श्रीतुलसी- दास को कृतकृत्य किया, फिर श्रीगोस्वामीजी काशी को चले श्रा, उसी दिव्यरूप की माधुरी का ध्यान करते थे। (६४०) टीका । कवित्त । (२०३) ___ हत्या करि विप्र एक, तीरथ करत श्रायो, केहै मुख "राम, भिक्षा डारियै हत्यारे कौ।” सुनि अभिराम नाम धाम मैं बुलाय लियो दियौ ले प्रसाद कियौ सुद्ध गायौ प्यारे को ॥ भई द्विज सभा कहि बोलि के पठाये श्राप "कैसे गयो पाप, संग लेके जये, न्यारे कौं।"पोथी तुम बाँचौ, हिये सार नहीं साँचौ अजू ताते मत काँचौ, दूर करै न अँध्यारे कौं"॥ ५११॥ (११८) वात्तिक तिलक। एक समय काशीजी में एक ब्राह्मण हत्या करके चनेक तीर्थ करते पाया और बड़े दीन स्वरसे पुकार के कहता था "राम, राम, हत्यारे को भिक्षा डाल दीजिये ।" श्रीगोस्वामीजी ने सुना कि "प्रथम अति अभिराम शत कोटि तीर्थ सम पावन नाम कह फिर अपने को हत्यारा भी कहता है यह कौन है ?"आपने निकल के पूछा। उसने अपना वृत्तान्त कहा। आप बोले कि "जो तुम इस प्रकार ग्लानि दीनतापूर्वक मेरे प्राणप्रिय परब्रह्म श्रीरामजी का नाम उच्चारण करते हो, तो शुद्ध हो गये श्रावो बैठो ।" फिर उसको पंक्ति में बैठाके श्रीराम प्रसाद पवाये। (क)"हरी भरी बाटिका सुधर्म की, विशाल अति, जाके देखें छूटि जात सबै दुख बंद है ।व्यास, शुक, नारद, मुनीश, शेष, शारदादि, पाराशर, बालमीक, मालिन को बृन्द है । चार सम्प्रदाय की बनाई चार रोशैं, 'रंग, शास्त्र, वर्द तरु पाँति, राजत स्वछन्द है। चचरीक 'तुलसी, सप्रेम ताके मध्य पैठि, अजब निकास्यो 'रामयश मकरन्द है ॥ १॥" (डाक्टर रामलालशरण मास्टर "रंग"