पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७८४

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७६५ Haathim Hanum anurad+++++ + + भक्तिसुधास्वाद तिबका। - इस वार्ता को काशी के सब ब्राह्मणों पंडितों ने सुन कर सभा की और श्रीगोस्वामीजी को बुलाकर कहने लगे कि “विना प्रायश्चित्त किये इसका पाप कैसे छूट गया? पंक्ति से न्यारे किये हुये को आपने अपने साथ में लेकर भोजन किया, यह अयोग्य है।" आपने उत्तर दिया कि “आप लोग शाखों के पुस्तक पढ़ते तो हैं परन्तु उन के सागर्थ में दृढ़ता सवाई नहीं करते, इसी से आप लोगों का मत कच्चा है, हृदय का अज्ञान अन्धकार नहीं जाता, देखिये तो श्रीराम तापिनी श्रादिकश्रुतियों तथा हारितादि स्मृतियों में श्रीराम नाम की कैसी महिमा लिखी है।" (प्रमाण श्लोक) "ब्रह्मघ्नो गुरुतल्पगोपि पुरुषः स्तेयी सुरापोऽपि- वामातृभ्रातृविहिंसकोपि सततं भोगैकपद्धस्पृहः । नित्यराममिमं जपन् रघुपतिभक्तन्याहृदिस्थ तथा ध्यायन्मुक्तिमुपैति किं पुनरसौ स्वाचारयुक्ता नरः ॥ १ ॥ स्वप्ने तथा संभ्रमतः प्रमादादिजम्भणासंस्खलनाद्यभावात् । रामेति नाम स्मरतस्सदै नश्यत्यसंख्यदिधेनुहत्या ॥२॥रकारोचा- रणनैव बहिनियति पातकम् । पुनः प्रवेशकाले च मकारस्तु कपाटवत् ॥ ३ ॥ (श्रुतिः) य एतत्तारकं ब्राह्मणो नित्यमधीते स सर्व पाप्मानं तरति स मृत्यु तरति स ब्रह्महत्यां तरति सभ्रणहत्यां तरति स वीरहत्यां तरति स सर्व हत्या तरति स संसार तरति स सर्व तरति सोऽवि. मुक्तमाश्रितो भवति स महान् भवति सोऽमृतत्वं च गच्छति ॥ इति श्रुतिः रामतापिनीयोपनिषदि ।” श्रीरामेति परं जाप्यं तारकं ब्रह्मसंज्ञकम् । ब्रह्महत्यादिपापघ्नमिति वेदविदोविदुः ॥ १॥ इतिसनत्कुमारसंहितायाम् ॥ "तुलसी अघ सब दूर में, रा अक्षर के लेत । तहाँ बहुरि आवे नहीं, 'मा' अक्षर पट देत ॥" (६४१) टीका । कवित्त । (२०२) देखी पोथी वाँच, नाम महिमा हुँ कही साँच, “ऐपै हत्या करै कैसे तरै कहि दीजिये ?" "आवै जो प्रतीति कहो,” कही याके हाथ जेंवै शिवजको बैल तव पंगति में लीजिये ॥" थार में प्रसाद