पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७८६

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७६७ Mainmhadows भक्तिसुधास्वाद तिलक । चुराने को आये, सो देखते क्या हैं कि एक धनश्याम सुन्दर वीर कटि में तरकस बाँधे, हाथ में धनुष वाण लिये खड़ा है । तब चोर चले गए, कुछ देर में फिर स्थान के दूसरी दिशा में पाये, वहाँ भी रक्षक खड़ा धनुष वाण को संधान कर मानो मार ही डालेगा । इसी प्रकार स्थान के तीनों दिशाओं में कई बार चोर आये, परन्तु उन सर्वतोमुख रक्षक ने सब ओर से रक्षा की, वरंच अपनी शोभा से चोरों के वित्त को भी चुरा लिया। इतने में रात्रि भी बीत गई। प्रभु के दर्शन से चोरों की कुछ और ही दशा हो गई, हृदय में उस बवि के दर्शन की बड़ी अभि- लाषा, और शुद्धता, आ गई। __ सबेरे सब चोर श्रीगोस्वामीजी के समीप श्राकर पूछने लगे कि "महाराज | आपके स्थान में श्यामसुन्दर किशोर वीर धनुष बाण लिये कौन रहता है ? कहाँ है ?" और कुछ अपना वृत्तान्त भी कह सुनाया। श्राप सुनकर मौन हो रहे, और नेत्रों से आँसुओं की धारा चलने लगी। हृदय में यह अनुताप हुआ कि "हाय ! यह तुच्छ मायिक पदार्थ के लिये प्राणप्रिय श्रीरामकृपालुजी ने रात्रि में चौकी दी ।" उसी क्षण सब द्रव्य बरतन आदिक पदार्थ लुटा दिये । श्रीरामदर्शन से और श्रीगो. स्वामीजी की दशा देख, चोरों के हृदय अतिशुद्ध हो गये, चरणों में पड़कर, प्रार्थना कर श्रीराममंत्र पंचसंस्कार सदुपदेश लिये, और कृतार्थ हुये। सर्वया। "अति सुन्दर रूप अनूप महाकवि कोटि मनोन लजावनिहारे। उपमा न कहूँ सुखमा के सुमंदिर मंदिरहूँ के वचावनिहारे ॥ दिननायकहूँ निशिनायकहूँ मदनायक के मद नावनिहारे । साँवर राजकिशोर सो चित-चोरनहूँ के चोरावनिहारे ॥ १॥" ___ (६४३) टीका । कवित्त । (२००) कियो तन विप्र त्याग, तिया चली संग लागि, दूरही ते देखि, कियो चरण प्रनाम है । वोले यों "सुहागवती," "मखो पति होऊँ सती, "अब तो निकसि गई ज्याऊँ सेवो राम है ॥ बोलिकै कुटुंब