पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७८९

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M AHARAHamtomeremeenamentaman श्रीभक्तमाल सटीक । काल हो । भई तब आँखें, दुखसागर को चाखें, अब वेई मैं रावं, भाख, वारो धन माल हो ॥ ५१६ ॥ (११३) वार्तिक तिलक । आपका उत्तर सुन यवनराज सक्रोध बोला कि “देखें राम कैसे हैं,” फिर अपने मनुष्यों को आज्ञा दी कि "इनको ले जाओ एक गृह में बैठाके पहरा में रक्खो, बिना कुछ करामात दिखाये नहीं छोड़ेंगे। लोगों ने ऐसा ही किया । तब श्रीगोस्वामीजी ने हृदय में अपने करामाती सहायक श्रीहनुमानजी को स्मरणकर विनय किया, "हे श्रीहनुमन कृपासिंधो ! अब आप दया कीजिये ॥ उसी क्षण इन पदों को बनाके प्रार्थना की-- (पद) “ऐसी तोहिं न बूझिये हनुमान हठीले । साहेब कहूँ न राम से तोसे न वसीले ॥” इत्यादि। (दूसरा पद) “समस्थ सुक्न समीर के रघुवीर पिारे। मोपर कीवी तोहिंजो करलोहि भिआरे ॥” इत्यादि। आपकी प्रार्थना सुनते ही राजगृह में और सव नगर भर में कोटान कोट बन्दर फैल गये, सो कैसे कि नये अर्थात् स्वयं श्रीहनुमान- जी बड़े विकराल अनन्त रूप धारण कर आगये और सबकी दुर्दशा करने लगे। नखों से, दाँतों से, लोगों को नोचने लगे यहाँ तक कि यवनराज की नारियों वेगमों के वनों को चीरफाड़ डाले, नोच चोथ के विकल कर डाला । वानरवृन्दों ने जैसा लंका में उपद्रव किया था वैसा ही यहाँ उत्पात मचाया, कोट को तोड़ फोड़ डाला उन्हीं पत्थरों से लोगों को चोट मारते लोट पोट किये डालते थे सब लोग हाय हाय कर रोने पुकारने लगे कि अब हम किस की ओट से बचें । सबने यही जाना कि प्रलय हुआ, महाउत्पात देखा । तब यवनराज के हृदय की आँखें खुली, दुख के समुद्र में डूबके निश्चय किया कि अब घेई फकीर हमारी रक्षा करेंगे, उन्हीं के ऊपर हम अपना धन सम्पत्ति निवछावर कर देंगे।