पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७९०

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७७१ - -++ - - - भक्तिसुधास्वाद तिलक । (६४६) टीका । कवित्त । (१९७) आय पाय लिये, “तुम दिये हम पान पावें, आप समझा "करा- मात नेकु लीजिये। बाज दविगयौ नृप, तव राखि लयौ कहो “भयो घर रामजू को बेगि छोड़ि दीजिये ॥” मुनि तजि दयौ और कलौ लैकै कोट नयौ, अवहूँ न रहे कोऊ वामै, तन छीजिये ॥” काशी जाय, वृन्दावन धाये मिले नाभाजू सों, सुन्यौ हो कवित्त लिज रीझ मति भीजिये ॥ ५१७॥ (११२) पातिक तिलक। बादशाह दौड़ता हुमा आके श्रीगोस्वामीजी के चरण पकड़कर विनय करने लगा कि “अब हम लोगों के प्राण आपके दिये हुए मिलते, और प्रकार से नहीं बच सकते ।" सुनके श्रीगोस्वामीजी ने कहा "कुछ काल करामात तो देख लो।" आपके वचन सुन अति लज्जित हो कहने लगा कि “सब देख लिया, अब रक्षा कीजिये आपने आज्ञा की कि "जो रक्षा चाहो तो हाथ उठाकर सब लोग श्रीरामजी की दोहाई दो।" ___ उन्होंने ऐसा ही किया। तब श्रीहनुमानजी ने अपना क्रोध उपद्रव शांत कर लिया । तदनन्तर श्रीगोस्वामीजी ने प्रथम पदों में जो श्रीहनुमानजी को प्रणय कठोरता कही थी, उसके क्षमापन में इस पद से प्रार्थना की। (पद)"अति भारत अति स्वारथी अति दीन दुखारी। इनको विलग न मानिये चोलहिं न विचारी"इ.। क्षमा होने पर यवनराज ने श्रीगोस्वामीजी से बहुत प्रेम प्रार्थना कर कहा कि “अब मुझे कुछ आज्ञा दीजिये सो सेवा करूँ।" आपने कहा कि “यह तुम्हारा घर, नगर श्रीरामजी का हो गया, श्रीहनुमानजी ने थाना कर लिया, इसको तुम शीघ्र छोड़ दो।" प्राज्ञा सुन वह उस निवास को छोड़ दूसरा नया कोट निर्माण कराके उसी में जा रहा । अव तक भी उस पुरानी जगह में कोई नहीं रहता, यदि रहै तो वह वन्दरों के मारे रहने न पाये।