पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८०

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HI M Afnath+400MJung-4HIMAR MPHIBHAIMIM +M01-OPLP4RAMIRPM- भक्तिसुधास्वाद तिलक । (१) श्रीब्रह्माजी। सो “बन्दौं विधिपद रेणु, भवसागर जिन कीन्ह यह । सन्त सुधा ससि धेनु, प्रगटे खल विष वारुणी ॥" सृष्टि और सुख दुःखादि प्रारब्धरेखाओं के कर्ता जगत्पिता सुगम अगमवरदाता श्रीब्रह्माजी की (श्रीभगवतनाभीकमल से जन्म आदि) कथाएँ, पुराणों में अगणित हैं। “हानि लाभ जीवन मरन, यश अप- यश विधि हाथ ॥” श्रीविधाताजी यद्यपि सब निछाओं में श्रेष्ठ तथा प्रधान हैं, तथापि इनकी गणना "धर्मप्रचारक निष्ठा" में प्रत्यक्ष है। जिन देव मुनि गो महि इत्यादिक की प्रार्थना से भगवत् के विविध अवतार होते हैं उन मण्डलों के अगुश्रा और मुखिया श्रीमन ही तो होते हैं, सो व्यवस्था किसको विदित नहीं है ? ॥ (२) श्रीनारदजी। चौपाई। बन्दौं श्रीनारद मुनिनायक । करतल वीण राम गुणगायक ।। अप्रतिहतगति देवर्षि श्रीनारद भगवान तो परमात्मा के मन ही हैं, भगवत् के अवतार हैं, और जगत् के परम उपकारक प्रसिद्ध हैं । सेवा, पूजा, कीर्तन, प्रसाद, भक्ति प्रचारक इत्यादिक सवही निष्ठाओं में प्रधान हैं। पुराणमात्र में आपकी शुभ कथा भरी है । सर्वलोकों में आपका पर्यटन केवल परोपकार के निमित्त, यही आपका व्रत सा है ॥ (३) श्रीशिवजी। (२७) टीका । कवित्त । (८१६) द्वादश प्रसिद्ध भक्तराज कथा “भागवत" अति सुखदाई, नाना विधि करि गाए हैं। शिवजी की बात एक बहुधा न जाने कोऊ, सुनि रस साने, हियो भाव उरझाए हैं ॥ “सीता” के वियोग "राम" विकल बिपिन देखि "शंकर" निपुण "सती" बचन सुनाए हैं। "कैसे ये प्रवीन ईश ? कौतुक नवीन देखौ”, मनेहूँ करत, अंग वैसे ही बनाए हैं ॥ २०॥ (६०६)