पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८०३

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धीभक्तमाल सटीक। में नहीं लाते, परंच माला कंठी तिबक वेषमात्र धारण करनेवालों को अनुराग सहित गुरुजन करके मानते थे। पिता श्रीविदेहजी की नाई, गृह में रहते हुए ही परम वैराग्यमान थे। श्रीरामचरणकमल के प्रेम मकरन्द से आपका मनरूपी भ्रमर मदमत्त रहा करता था।"श्रीयोगानन्द जी के वंश को उजागर करके दिन रात श्रीवावनजी श्रीसीताराम गुणगान किया करते थे। -- - (१७०) श्रीपरशुरामजी। (६५८) छप्पय । (१८५) जंगली देशके लोग सब, “परशुराम किय पारषद ॥ ज्यों चन्दन की पवन नीम्ब पुनि चन्दन करई। बहुत काल तम निबिड़ उदै दीपक ज्यों हरई॥ श्रीमट. पुनि हरि ब्यास संत मारग अनुसरई। कथा कीरतन नेम रसन हरि गुण उच्चरई॥ गोबिन्द भक्ति गदरोगगति, तिलक दाम सद बैद दद। जंगली देश के लोग, सब “परशुराम” किय पारषद ॥ १३७॥ (७७) वात्तिक तिलक । श्रीपरशरामदेवजी ने अपने उपदेश.से जंगली देश के लोगों को भगवत् पार्षदों के समान कर दिया किस प्रकार कि जैसे दिव्य मलयागिरि चन्दन का पवन नींब के वृक्ष को चन्दन कर देता है, और जैसे बहुत काल के सघन अन्धकार को दीपक हर लेवा है, इसी प्रकार जंगली लोगों का ज्ञान मापने हर लिया।"श्रीभट्टजी" और "श्रीहरिव्यासजी" के साधु मार्ग में आप भी चले; सदा । नेम से भगवत्कथा नाम कीर्तन श्रीहरि गुण रसना से उच्चारण करते थे, जैसे रोगी को अनुपानयुक्त रसायन औषधि देकर सवैद्य