पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८०८

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७५९ + - न + ve - भक्तिसुधास्वाद तिलक । माँगत फिरत हुती जुक्ती श्री गर्भवती, कही लै रुपैया बीस "नेकु कयौ राग्यो है"।। ५.२५ ॥ (१०४) वात्तिक तिलक। एक समय कल्याणसिंह नाम का राजपूत कथा में आ बैठा सुनते ही उसको लोकोत्तर प्रेम रंग लग गया। बहुत समीप ही “धौरहरा" ग्राम में रहता था, नित्य कथा सुनने से विषय विरत हो उनने नारी से हास विलास तज दिया।ची दुखित हुई और जान गई कि इस महजी की कथा सुनने से इनकी कामवासना छूट गई है।' स्त्री ने कामवश हो विचार किया कि "मैं भट्ट की नई निन्दा कराऊँ।" एक युवा स्त्री गर्भवती भीख माँगती फिरती थी, उससे कहा कि "मुझसे बीस रुपये ले लो मैं कहूँ सो कर” । उसने कहा "बहुत अच्छा ॥ (६६४) टीका । कवित्त । (१७९) गदाधरभट्टज की कथा में प्रकाश कहौ "अहो कृपाकरी अब मेरी सुधि लीजिय" । दई लौंडी संग, लोभ रंग चित भंग किये, दिये लै वताय, बोली “मेरो काम कीजिय” । बोले श्राप “बेठियै जू जाप नित करौं हिये, पाप नहीं मेरी गई दर्शन दीजिये।” स्रोता दुख पाय, भाई "झूठी याहि मारि नाच' साँची कहि राखें, सुनि तन मन बीजिये ।। ५२६ ॥ (१०३) बात्तिक तिलक । उसने कहा जा, गदाधरभट्टजी की कथा में प्रकाश कर उन्हीं से अच्छे प्रकार कह कि "मेरे ऊपर कृपा कर आपने गर्भवती किया तो अब मेरी सुधि लीजिये।" इस प्रकार सिखाकर बताने के लिये लौड़ी संग कर दी । द्रव्य के लोभ से वह आकर उसी प्रकार बोली कि "महाराज | आपका दिया गर्भ पूरा हुअा, मुझे रहने को ठिकाना बताइये।" सुनके उस कलंक से आपको कुछ क्षोभ न हुआ, वरंच मापने कहा कि “मैं तो तेरा नित्य स्मरण करता था मेरा दोष नहीं