पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Pravarietint भक्तिसुधास्वाद तिलक । नाश कर प्रेमरस पान किया । सो बात मैंने आप के चरित्र ही वर्णन कर दिखा दी। आप भी, भाग्यमान नृपति “अकचर" के समय में विराजमान थे। (६६९) छप्पय । (१७४) चरण शरण चारण भगत, हरि गायक एताहुआ॥ चौमुखें, चौरी, चंड, जगत ईश्वर गुण जाने । करमा- नन्द अरु कोल्हें, अल्हं, अक्षर परवाने ॥माधौ,मथुरा मध्य, साधु, जीवानंद, सीधा । दूदी, नारायणदासे, नाम माइन नतग्रीवा ॥ चौरासी, रूपक चतुर, बरनत बानी, जूजुवों ॥ चरण शरण चारण भगत, हरि गायक एता हुआ॥१३६ ॥ (७५) वात्तिक तिलक । श्रीहरिजी के चरण शरण होकर भगवत् गुण गानेवाले चारण (कथक) भक्त इतने हुए। १ श्रीचौमुखजी श्रीसाधूजी २ श्रीचौड़ाजी श्रीजीवानन्दजी ३ श्रीचंडजी १. श्रीसीवाजी ये जगत् में श्विर ही के |११ श्रीददाजी गुण गाना जानते थे। १२ श्रीनारायणदासजी ४ श्रीकरमानन्दजी १३ श्रीमाइनजी ५ श्रीकोल्हजी प्रभु के चरणों में कण्ठ ६ श्रीअल्हजी नवानेवाले। इन्होंने भगवत पद रचना में १४ श्रीचौरासीजी प्रामाणिक अक्षर रक्खे। रूपक देखाने में चतुर और ७ श्रीमाधोनी । वर्णन की वाणी में प्रवीण। श्रीमथुरा में। |१५ श्रीजुजुवाजी नामो का (उनके विशेषणों से अलग करके ठीक पता लगाना अत्यन्त ही कठिन । (वरन् सच तो यह कि असम्भव) है।