पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८१६

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७९७ anvantauranteentenameter- matteMANsit- MH- -- भक्तिसुधास्वाद तिलक । बात सुनि लीजिये । “तेरो छोटो भाई, मेरौ भक्त सुखदाई,” ताकी कथा ले चलाई जामैं आप ही सोंधीजिये । “प्रथम जनम माँझ बड़ी राज- पुत्र भयो, गयो गृह त्यागि सदा मोसों मति भीजिये । आयो बन, कोऊ भूप संग राग रंग रूप, देखि चाह भई, देह दई भोग कीजिये ॥ ५३५ ॥ (४) __ वार्तिक तिलक । सगुण उपासक भक्तों की निराली विचित्र दशा सुनिये, प्रभु के वचन सुनते ही कोल्हजी का जो दुःख भूल गया था सोई फिर नवीन हो पाया अर्थात् मंदिर में मुझे माला न दी उसको दी, और यहाँ वह नहीं है तो भी प्रसाद दिये ॥ प्रभु इन की दशा देख उसके प्रथम जन्म की कथा कहके प्रबोध करने लगे जिसमें ये प्रसन्न हो जाय । आप बोले कि "उसकी बात सुनो, तुम्हारा छोटा भाई मेरा सुखदाई भक्त प्रथम जन्म में बड़े राजा का पुत्र था, सो गृह तजि वन में जाके मुझमें मन लगाके भजन करता था, वहाँ एक राजा शिकार खेलने आया । एक दिन रह गया उसका भोग विलास देख इसको भी चाह हुई इसी से हमने देह दिया कि जिसमें भोग करके वासना से मुक्त हो मुझे प्रास होवे ।।" ( ६७५) टीका । कवित्त । ( १६८ ) तेरेई वियोग अन्न जल सब त्यागि दियौ जियो नहीं जात वापै बेगि सुधि लीजिये। हाथ पै प्रसाद दीनों, पाय घर चीन्ह लीनों, सुपनो सौ गयौ बीति, प्रीति वासों कीजियै ॥ द्वारिका को संग सुनि भावतही प्रागै चल्यो मिल्यो भूमि पर हग भरि वहै दीजिये। कही सब बात श्याम धाम तज्यो ताही छिन कलौ बन बास दोऊ अति मति भीजिये ।। ५३ ६ ॥(६३) वात्तिक तिलक । "अब वह तुम्हारे वियोग से, अन्न जल त्याग कर, मरणप्राय हो रहा है । जाओ, शीघ्र उसकी सुधि लो।" प्रभुजी ने हाथ में प्रसाद