पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८२०

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Indian Pureuse+HAPRAMp4 भक्तिसुधास्वाद तिलक । कि "मैं हरिकृपा से मथुराजी में शरीर त्याग करूँगा।" ऐसा दृढ़ हृदय में रखे थे। कहीं इस वृत्तान्त को बादशाह ने सुनकर द्वेषवश आपको काबुल की लड़ाई में नियोजित कर दिया। राजा और लोगों की नाई कालके अधीन नहीं थे, इससे आपकी देह में बल अधिक ही बना रहा, और जीवन की अवधि भी हरिकृपा से ज्ञात हो गई। (६८०) टीका । कवित्त । (१६३) जीवन अवधि रहे निपट अलप दिन, कलप समान बीते पल न विहात है । आगम बनाय दियो, चाहै इन्हें साँचौ कियो, लियो भक्ति भाव जाके छायो गात गात है। चल्यो चढ़ि साँड़िनी पै लई मधुपुरी पानि, करिक असनान प्रान तजे,सुनी बात है। जै जै धुनि भई ब्यापि गई चहूँ ओर अहो, भूपति चकोर जस चंद दिन रात है॥५४०॥ (८६) बार्तिक तिलक । आपके जीवन की अवधि बहुतही थोड़े दिन रह गई इससे पख पल कल्प समान बीतने लगे। प्रभुजी सच्चा किया चाहते थे इसलिये भागम जना दिया। आपके भक्ति भाव तो सांग में पूर्ण था ही, उसी क्षण साँड़िनी पर चढ़ चले, श्रीमथुराजी में आके विश्रान्तघाट स्नान कर, पद्मासन से बैठे प्रभु का ध्यान धर, प्राण त्याग कर दिये सब भक्तों ने जय- जयकार धुनि की और यह कीति चारों ओर छा गई। "श्रीपृथ्वीराज के यश चन्द्रमा को बादशाह चकोर सरीखा चितै रहा था, यह वार्ता हमने श्रवण की है ।। एक और वार्ता सुनने योग्य है कि एक समय एक जंगल में श्रीपृथ्वीराजजी तथा आपकी सेना को रह जाना पड़ा। भक्तवत्सल श्रीभगवत् ने सबको सुख देने के लिये एक नगर वसा दिया जिससे सेना सुखी हुई, राजा ने हरिकृपा के लिये अनेक धन्यवाद किये ॥ (१७७) श्रीसीवाँजी। (६८१) छप्पय । (१६२) द्वारिका देखि पालंटती, अचढ़ सी3 कीधी अटल ॥