पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८३

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६४ RHARE- भ न- ANNAAHEN +IDHANRAMHANJAN H-10- श्रीभक्तमाल सटीक । उनका प्रेमभाव भगवद्भक्तों में अत्यन्त ही बढ़ा, कि जो क्योंकर कहा जा सकता है (रदयो कैसे जात), क्योंकि उनके अन्तःकरणरूपी स्वच्छ वन पर अनुराग का रंग गहरा चढ़ पाया। श्लो० भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ । ___ याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धास्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥ श्रीशिवजी इसी से भागवतों में शिरोमणि गिने जाते हैं और इनके अनेक चरित्र ऐसे पर उपकार भरे हैं कि जैसे "विषभक्षक, त्रिपुरारि," इत्यादिक नामों से ही सूचित होते हैं आपकी कथा-समूह पुराणों में प्रसिद्ध है, आप जगद्गुरु परमोपदेशक हैं, श्रीरामनाममाहात्म्य के प्रकाशक हैं, और श्रीकाशीजी में मरनेवाले जीवमात्र को श्रीरामतारक मंत्र सुनाके मुक्ति देते हैं। (8) श्रीसनकादि। सनकादिक चारो भाई (१) श्रीसनक (२) श्रीसनन्दन (३) श्रीसनातन (४) श्रीसनत्कुमार, श्रीभगवत् के अवतार और श्रीब्रह्माजी के पुत्र हैं ।। चौपाई। जानि समय सनकादिक आए । तेज पुंज गुण शील सुहाए। ब्रह्मानन्द सदा लय लीना । देखत बालक बहु कालीना॥ रूप धरे जनु चारित वेदा । समदरसी मुनि विगत विभेदा॥ भासा वसन व्यसन यह तिनहीं । रघुपति चरित होय तहँ सुनहीं । मुनि रघुपति छवि अतुल विलोकी । भए मगन मन सके न रोकी ॥ दो बार बार प्रस्तुति कार, प्रेम सहित सिरु नाइ। ब्रह्म भवन सनकादि गे, भति अभीष्ट वर पाइ॥ (५) श्रीकपिलदेव। श्रीकपिलदेवजी श्रीभगवत् के अवतार पुरुष प्रकृति विवेकमय तत्त्व बान खानि सायशास्त्र के विशेष प्राचार्य हैं।