६५ भक्तिसुधास्वाद तिलक । चौपाई। आदि देव प्रभु दीनदयाला। जठर धरेउ जेहि “कपिल" कृपाला॥ "सांख्य शास्त्र" जिन्ह प्रगट वखाला । तत्त्व विचार निपुन भगवाना। (६) श्रीमनुजी श्रीदशरथजी। यह वात तो सभी जानते हैं कि "मनु" ही से मनुज, मनुष्य (नर) वा मानव सृष्टि हुई है । "श्रीस्वायंभू मनुजी", की कथित “मनुस्मृति" सर्व धर्मशास्त्रों में अग्रगण्य है ।। श्रापकी कठिन तपस्या, कालोकिक भजन, विलक्षण प्रीति, तथा अनन्यभक्ति तो श्रीतुलसीकृत रामायण "मानसरामचरित" बालकाण्ड में प्रसिद्ध ही है कि जिन्होंने सर्वावतारी परब्रह्म को पुत्र करके प्रत्यक्ष सबको सुलभ कर दिया ।। चौपाई। स्वायंभू मनु अरु शतरूपा । जिनते भइ नरसृष्टि अनूपा ।। दो जासु सनेह सँकोच बश, राम प्रगट भए आई। जे हरहिय नयनन कबहुँ, निरखे नहीं अघाइ॥ छप्पय । "भक्ति भूमि भूपाल श्रीदशरथ दश दिश विदित यस ॥ मनुबपु में बहु भक्ति सुतपकरि ब्रह्म बिलोके । परमातम प्रिय पुत्र पाय सिय बधू बिलोके ।। फणिमणि इव जल मीन सरिस प्रभु श्रीति सुपागे । सत्य प्रेम के सीव राम बिछुरत तन त्यागे ॥ कौशल्यापति पूज जग धर्मध्वज बात्सल्य रस । भक्ति भूमि भूपाल श्रीदशरथ दशदिशि विदित यस ।।" (७) श्रीप्रह्लादजी। श्रीनरहरिदास अर्थात् “प्रह्लादजी" दादश भक्तराज में हैं, ये महाभाग- वत "दास्यनिष्ठा" में अग्रगण्य हैं। श्रीनरसिंहावतार भापही के हेतु होना प्रसिद्ध है ही। श्रीनरमिंहजी तथा श्रीप्रह्लादजी का यश अनेक पुराणों में गाया हुषा है । भगवत् की इच्छा से एक समय श्रीसनकादिक ने "श्री- जय, श्रीविजय" को तीन जन्म निशाचर होने काशाप दिया; पुनः भग- वत् तथा श्रीसनकादिक नेशापानुग्रह किया कि भगवत् अवतार लेले के तीन जन्म में उद्धार करेंगे । सा पहिले जन्म में "हिरण्याक्ष तथा हिरण्य-