पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८३२

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AmpAMAgrawani भक्तिसुधास्वाद तिलक । राजा को यह बात सुनते ही अतिशय दुख, क्रोध तथा वैर उत्पन्न हुआ। कुँवर को घात करने को सेना सहित चढ़ चला । प्रेमसिंहजी भी सुन युद्ध के लिए सनद्ध हुये॥ (६९६) टीका । कवित्त । (१४७) नृप समझाय ख्यौ “देस में चवाय है है" बुधिवंत जन प्राय सुत सों जताई है । बोल्यो "विषे लगि कोटि कोटि तन खोये, एक भक्ति पर आवै काम यह मन आई है | पाय परि, मांगि लई, दई जो प्रसन्न तुम, राजा निसी चल्यो जाय करौं जिय भाई है । आयो निज पुर दिग डीर नर मिले आनि कह्यौ सो वखानि सब, चिन्ता उपजाई है ॥ ५५४ ॥ (७५) वात्तिक तिलक। मंत्रियों ने माधवसिंह को बहुत समझाया कि "देखिये, यदि श्राप पुत्र का घात करेंगे तो लोक में बड़ी ही निन्दा होगी इससे क्षमा कीजिये।" और इधर प्रेमसिंहजी को भी आकर समझाया। "कुंवरजी कहने लगे कि संसारी विषय के हेतु मैंने कोटिन शरीर खोडाले, एक शरीर भला भगवद्भक्ति पर भी काम आजाय तो बहुत अच्छा है।" बुद्धिमान लोगों ने कुवर के चरणों में पड़, क्षमा कराई और दोनों ओर शान्त किया | तब माधवसिंह दिल्ली से रात्रि में चला कि जाकर रानी को मार डालूँगा। अपने पुरके पास आया, उसके सब लोग आकर मिले और रानी का सब वृत्तांत सुनाया। उसको वड़ी चिन्ता उत्पन्न हुई। (६९७) टीका । कवित्त । (१४६) भवन प्रवेश कियौ, मंत्री जो बुलाय लियौ, दियो कहि “कटी नाक लोह निवारिये । मारिवो कलंक हू न आवै” यों सुनावै भूप काहू बुधिवंत नै विचारि ले उचारिये ॥ "नाहर जु पीजर में दीन बांडि लीजै मारि पाछे ते पकार वह वात दावि डात्यैि ।" सबनि सुहाई, जाय करी मन भाई, आयो देख्यो वा खवासी कही "सिंह, जूनिहारिय" ॥५५५ ॥ (७४)