पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८३३

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- -- - -+H amarma- Meema+ श्रीभक्तमाल सटीक। वात्तिक तिलक । माधवसिंह ने अपने घर में जाकर मंत्रियों को बुलाकर कहा कि "इस स्त्री ने मेरी नाक काट ली। पर जब तक रानी रहेगी, तब तक मानों रक्त चल रहा है, सो बन्द करो; जिसमें मारने का कलंक भी न लगे और इसका वध हो ही जाय । सुनकर कोई संसारी बुद्धिमान विचारक बोला कि "जो पिंजड़े में बाघ है उसी को उस घर के भीतर छुड़वा दीजिये । वह रानी को मार डालेगा पीछे वाघ को पकड़के वात छिपा लेंगे कह देंगे कि बाघ छूट गया था सो उसने रानी को मार डाला-1" सुनते ही राजा और सब कुमंत्रियों को यह वात अच्छी लगी ऐसा ही किया।। . रानी पूजा करती थी वह दासी देख कर बोली कि "देखिये सिंह पाया ॥ (६९८ ) टीका । कवित्त ( १४५ ) कर हरिसेवा भरि रंग अनुराग हग, सुनी यह बात नेकु नेन उन टारे हैं । भाव ही सो जाने, उठि अति सनमाने, "अहो । भाज मेरे भाग, श्रीनृसिंह जू पधारे हैं ॥ भावना सचाई वही शोभा लै दिखाई छल माल पहिराई, रचि टीको लागै प्यारे हैं । भौन ते निकसि धाए, मानौ खंभ फारि आये, विमुख समूह ततकाल मारि डारे हैं ॥ ५५६ (७३) वात्तिक तिलक । रानीजी, आनन्द से भरी, नेत्रों को अनुराग रंग से रंग के, श्रीहरिसेवा करती थीं, यह बात सुन नैन उठाके उधर देख श्रीनृसिंहजी भाव से निश्चय कर बोली कि "आज मेरे भाग्यवश श्रीनृसिंहजी पधारे हैं" और उठके प्रणाम कर पूजा की सामग्री लै अति सम्मान- पूर्वक पूजा करने को चलीं ॥ सर्वान्तर्यामी प्रभु ने भावना की सचाई देख, नृसिंहरूप की शोभा से दर्शन दिया । श्राप जाके श्रीनृसिंहजी को तिलक दे, माला पहिरा, भोग लगाके भारती प्रणाम कर, प्रीतियुक्त दर्शन करने लगी। श्रीरनावतीजी की जय ॥