पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८३९

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८२० श्रीभक्तमाल सटीक । (१८१) श्रीनारायणदास नृतक। ( ७०५ ) छप्पय । ( १३८ ) नृतक नारायनदास को, प्रेमपुंज आगे बढ़यौ ॥ पद लीनौ परसिद्ध प्रीति जामें दृढ़ नातो । अचर तनमय भयौ मदनमोहन रंगरातो॥ नाचत सब कोउ आहि- काहि पै यह बनि आवै। चित्र लिखित सो रह्यौ त्रिभंग देसी जु दिखावै ॥ "हँडिया * सराय" देखत दुनी, हरिपुर पदवी को चढ़यौ ।नृतक नारायनदास को, प्रेमपुंज आगे बढ़यौ ॥ १४५ ॥ (६९) वात्तिक तिलक । नृतक (नाच करनेवाले कथिक) श्रीनारायणदासजी का प्रेमपुंज आगेही को बढ़ता गया अर्थात् प्रभु के समीप तक पहुँच गया। एक समय सप्रेम नृत्य करने को खड़े हो, प्रसिद्ध पद जिसमें प्रथम ही "दृढ़ प्रीति का नाता" ऐसा शब्द पड़ा है सो गाने लगे-- पद-(“साँचो एक प्रीति को नातो॥ कै जाने राधिका नागरी के मदनमोहन रंगरातो ॥") सो “मदनमोहन गरातो" इन अक्षरों में तन्मय हो गये अर्थात मदनमोहन के अनुराग में रंगके लीन हो गये। नाचते गाते तो सनही हैं, परन्तु जैसी श्रीनारायणदासजी से बन आई, वैसी दूसरे से कहाँ वन भाती है । पद गान के ध्यान में ऐसे तदाकार हुए कि मानों चित्र के लिखे हैं, और जिस नित्य निकुंज देस में त्रिभंगीलाल श्रीराधिकाजी सहित विराजते विहार करते हैं, मन चित्त से वहाँ जाकर प्रत्यक्ष दर्शन किए। हँड़िया सराय में सब लोगों के देखते २ उसी दशा में तन तज ऊपर हरिपुर के मार्ग में चढ़ प्रभु को प्राप्त हुए। ॐ हंडिया, सराय जो प्रयागराज' से छ, कोस है। प्रसिद्ध "मुल्ला दो प्याजा" वाला हँडिया सराय I "पदवी" मार्ग, पथ, रास्ता ।