पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८४२

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८२३ Hiranata-MAmit mardPMus-and- भक्तिसुधास्वाद तिलक । इन सबों ने भले प्रकार श्रीहरियशामृत की वरषा की। (१)श्रीवोहिथजी | (१२) श्रीवछपालजी (२) श्रीरामगोपालजी (१३) श्रीकन्हरजी (३) श्रीकुवखरजी (१४) श्रीगोसूजी (४)श्रीगोविन्दजी (१५) श्रीरामदासजी (५)श्रीमांडिलजी (१६) श्रीनारदजी (६)श्रीछीतस्वामीजी (१७) श्रीश्यामजी (७)श्रीयशवन्तजी (१८) श्रीहरिनारायणजी (८) श्रीगदाधरजी (१९) श्रीकृष्णजीवनजी (६)श्रीअनन्तानन्दजी (२०)श्रीजन भगवान्जी (१०) श्रीहरिनाम मिश्रजी (२१) श्रीश्यामदासजी (११) श्रीदीनदासजी | (२२) श्रीविहारीजी (७०९) छप्पय । (१३४) निरबर्त भये संसारतें, ते मेरे जजमान सब ॥ उद्धवं, रामरे, परसराम, गंगा, धूषेत निवासी । अच्युतकुले, ब्रह्मदास, बिश्राम, सेपसाईके वासी ॥ किंकर, कुंडा, कृष्णदास,खेमें, सोठी, गोपानद, । जैदे, राघौ, बिदुर, दयाल, दामोदर, मोहन, परमानदै ॥ उद्धव, रघुनाथी, चतुरोनगर्ने, कुंज ओक जे बसत अब । निरवर्त्त भये संसारते, ते मेरे जजमान सब ॥१४७॥ (६७) वात्तिक तिलक । जो भक्त संसार से निवृत्त हुये वे सब मेरे यजमान हैं और मैं उनका यशगायक याचक हूँ, उनमें विशेषों के नाम ॥ (१) श्रीउद्धवजी (३) श्रीपरसरामजी (२) श्रीरामरेनुजी (४) धूषेतनिवासी श्रीगंगाजी