पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८४३

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८२४ 44 . श्रीभक्तमाल सटीक । (५) श्रीअच्युतकुलजी (१५) श्रीराघोजी (६) श्रीब्रह्मदासजी (१६) श्रीजयतारन बिदुरजी (७)सेपसाई के वासी श्रीविश्रामजी (१७) श्रीदयालजी (८) श्रीकिंकरजी (१८) श्रीदामोदरजी (६)श्रीकुंडाजी (१६) श्रीमोहनजी (१०) श्रीकृष्णदासजी (२०) श्रीपरमानन्दजी (११)श्रीखेमजी (२१) दूसरे श्रीउद्धवजी (१२) श्रीसोठाजी (२२) श्रीरघुनाथीजी अब वृन्दा- (१३) श्रीगोपानन्दजी वन कुंज के निवासी (१४) श्रीजयदेवजी (२३) श्रीचतुरोनगनजी॥ (१८२)श्रीजयतारन बिदुरजी। (७१०) टीका । कवित्त । (१३३)। झीथडो ढिगही मैं जैतारन बिदुर भयौ, भयो हरिभक्त, साधु- सेवा मति पागी है । बरषा न भई, सब खेती सूखि गई, चिंता नई, प्रभु आज्ञा दई, बड़ौ बड़भागी है ॥ “खेत को कटाचौ, औ गहावो, लै उडावी. पावौ दो हजार मन अन्न,” सुनी प्रीति जागी है । करी वही रीति, लोग देखें न प्रतीति होत, गाए हरि मीत राशि लगी अनुरागी है ॥ ५६३ ॥ (६६) . वात्तिक तिलक।। जोधपुर राज्य में झीथड़ा गाँव के पास ही में श्रीहरिभक्त “जय- तारन-विदुरजी" अपनी मति संतसेवा में लगानेवाले हुये । एक समय वर्षा न होने से सब खेती सूख गई। दुर्भिक्ष पड़ा, आपको संतों के भोजन के लिये नवीन चिन्ता हुई। तब स्वप्न में कृपासिन्धु प्रभु ने आज्ञा दी, क्योंकि आप बड़े भाग्यवान थे कि "सूखे खेत को कटाकर : गहावो उड़ानो (उसाचो), उसमें तुमको २००० (दो सहस्र ) मन अन्न मिलेगा॥" प्राज्ञा सुनते ही जागे, अति प्रीतिमान हो आपने वैसा ही किया । १"हजार"-१०००-सहन-दस सौ॥