पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८४९

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4-9-14 -- 4 - 4 + 4 + + + 4- 4 . HIN+ HIMDM I ndi- ८३० श्रीभक्तमाल सटीक। __ आपने कहा “बहुत अच्छा खोद दूँगा,” उसी वचन पर सब सामग्री लाकर, जिन सन्तों को एक श्रीसीतारामजी ही प्यारे हैं, उनको बड़े मेम से भोजन कराया। श्रीअयोध्याजी लक्ष्मणकिला तथा सारन चिराँद में जो स्थान हैं, वहाँ के महात्मा, "श्रीकेवल कूबाजी ही के द्वारा" के हैं। (७१७) टीका । कवित्त । (१२६) गए कवा खोदिवकों, सुवा ज्यों उचारै नाम, हुया काम जान्यौ वनिमयौ सुख भारी है। श्राई रेत भूमि, भूमिमाटी गिरिदवे वाम, केतिक हजार मन होत कैसे न्यारी है । सोक करि, थाये धाम, "राम" नाम धुनि काहूं कान परी, पीत्यो मास; कही बात प्यारी है । चले चाही ठौर स्वर सुनि प्रीति भौर परे, रीति कछु और, यह सुधि बुधि टगरी है ॥ ५६८ ॥(६१) पात्तिक तिखक। संतों के चले जाने पर आप जाकर कुआँ खोदने लगे, और मुख से शुक (तोते) के समान सप्रेम श्रीसीताराम नाम उच्चारण करते, बहुत प्रसन्नतापूर्वक नीचे तक खोद ले गये । "कीर ज्यौं नाम स्टै तुलसी सो कहै जग जनकीनाथ पढ़ाय?" कुआँ तैयार होते देख बनियाँ और भी आनन्दित हुये। ___ इतने ही में नीचे वालू मिली वस ऊपर से टूटके सहस्रों मन मिट्टी आपके ऊपर गिरपड़ी। वह कैसे निकल सके ? सबोंने जाना कि दबकर मर गये, शोक करते चले आये। एक मास पीछे उस ठिकाने कोई गया उसके कानों में श्रीराम नाम की धुनि पड़ी, गाँव में दौड़ आया सुखदप्रिय समाचार सुनाया, सब लोग पाकर वहाँ श्रीराम नाम का शब्द सुन मानों प्रीति के भँवर में पड़ गये । सबकी तनमन की सुधि भूलि गई, क्योंकि वह नामोचारण और ही सप्रेम रीति से सुनाई देता था। (७१८) टीका । कवित्त । (१२५) ... माटी दूर करी, सब पहुँचे निकट जब, बोलिक सुनायौ "हरि" "दूर" अलग।