पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८५०

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-enturer me-anpramanarian -HANAINA- भक्तिसुधास्वाद तिलक। बानी लागी प्यारियै । दरसन भयो, जाय पाँय लपटाय गए, रही मिहराव सी है, कूबहू निहारियै ॥ धलौ जलपात्र एक, देखि बड़े पात्र जाने, पाने निज गेह पूजा लागी अति भारिय। भई द्वार भीर, नर उमाई अपार श्राये, महिमा विचारि बढ संपति लै वारियै ।। ५६६ ॥(६०) वात्तिक तिलक। गाँव के सब लोग लगकर अति शीघ्रता तथा सावधानता से हाथों- हाथ मिट्टी निकालकर श्रापके निकट पहुँचे । “हरेराम हरेराम” यह वाणी कहकर सुनाया, अति प्यारी लगी, श्रीकेवलजी का दर्शन कर लोग चरणों में लिपट गये देखा कि श्रीरामकृपा से नीचे गुफा (महराब ) सरीखा हो रहा था, नीचा बहुत था, इससे एक मास भर वहीं बैठे रह गए इससे आपकी पीठ में कूबर हो गया। "कूबाजी" कहलाने लगे। आपके आगे एक जल भरा पात्र रक्खा हुआ था। सबने जाना कि ये श्रीरामजी के बड़े कृपापात्र हैं, सो निकाल के बाजा बजाते बड़े प्रेम से घर लाकर लोगों ने विराजमान किया । सबने आपको बड़ी भारी पूजा चढ़ाई। एक एक से सुनकर बहुत से लोग आये दार में बड़ी ही भीड़ हुई । श्रीकेवलजी की माहमा विचार कर लोगों ने बहुत साधन चढ़ाया, और नेवछावर करके लुटा भी दिया । (७१९) टीका । कवित्त' । ( १२४ ) सुंदर स्वरूप श्याम ल्याये पधरायवेकों, साधु निज धाम श्राय कूबाजू के बसे हैं । रूप को निहार मन में विचार कियो आप "करें कृपा मोको प्रभु” अचल है लसे हैं ॥ करत उपाय संत टरत न नैक किहूँ कहीजू अनंत हरि रीझे स्वामी हसे हैं। धवौ “जानराय" नाम जानि लई ही की बात, अंग मैं न मात सदा सेवा सुख रसे हैं ।। ५७०।। (५६) वात्तिक तिलक। श्रीकेवलजी "कूधाजी" विख्यात हो, मनमानी संतसेवा करने

  • "मिहाय"Lisr=गोलशून्य, घनुपाकार याकार ॥