पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८५३

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MAutomadrung ...+NAI + Man d श्रीभक्तमाल सटीक। कखौ जोई, पुत्र सुता भूख भोई, आय परी झीथड़ा में स्वामी को सुनाई है ।। ५७३ ॥ (५६) . वार्तिक तिलक। जल ले बहुत त्वरा से आके संतों को खीर पाते देख क्रोधाग्नि से जलती हुई, माई का मुख देख दुखसमुद्र में डूब गई । आपने उसको विमुख पा, घर से निकाल दिया । उसने जाके दूसरा पति कर लिया और उससे बेटी बेटे हुए । एक समय दुकाल पड़ा. वह पुरुष अपने ही भूखों से मरने लगा, तब इसके बेटी बेटों को कैसे पाल सके। निदान अति व्याकुल हो, वह उस पति और बेटी वेटों को लिये भूख से पीड़ित झीथड़ा" में आके रो रोकर स्वामीजी को विनय सुनाने लगी॥ । (७२३) टोका । कवित्त । (१२०) नाना विधि पाक होत, संत आ जैसे सोत, सुख अधिकाई, रीति कैसे जात माई है । सुनत बचन वाके दीन दुख लीन महा, निपट प्रवीन मन माँझ दया आई है ॥ “देखि पति मेरो और तेरौ पति देखि याहि कै कै निवाहि सक परी कठिनाई है। रही बार झाखौ करो पहुँचे अहार तुमैं" महिमा निहारि हग धार लै बहाई है ।। ५७४ ॥ (५५) वात्तिक तिलक । ' अापके यहाँ नित्य श्रीसीतारामजी के लिये अनेक प्रकार की रसोई हो रही है, चारों ओर से जैसे समुद्र में नदियाँ आती हैं, इसी प्रकार संत पाते हैं, आपकी सेवा की रीति और श्रानन्द की अधिकता कैसे कही जा सक्ती है ? दुख से भरे दीन वचन उस स्त्री के सुन, आप साधुता में अति प्रवीण तो थे ही, मन में दया लाकर बोले कि "री मूर्ख ! देख मेरे पति का 'प्रभावःकि कैसा आनन्द हो रहा है, और अपने पति को भी देख कैसी कठिनता में पड़ रहा है । अच्छा, बाहर पड़ी रह, दार में झाड़ लगाया कर, तुम सबको खाने को मिला करेगा ॥" • आपकी महिमा देख भाग्यहीना रोने लगी॥ . .