पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८५५

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श्रीभक्तमाल सटीका बार्तिक तिलक । स्वामी श्रीअग्रदासजी की कृपा अनुग्रह तें, उनके ये सब शिष्य भागवतधर्म की ध्वजा के सरीखे हुए। जिनके मस्तक पर प्रभु समर्थ "सौरभ" अर्थात् श्रीअग्रस्वामीजी ने अपना करकमल रक्खा ये सब अपने, तथा शरणागत जीवों के, तीनों ताप छुड़ानेवाले हुये, जिनमें परम प्रसिद्ध- (१)श्रीजंगीजी 1(8) कोमल हृदयवाले (२) श्रीपयागदासजी श्रीकिशोरजी (३) श्रीविनोदीजी (१०) श्रीजगतदासजी (४) श्रीपूरनदासजी (११) श्रीजगन्नाथदासजी (५) श्रीवनवारीदासजी (१२) श्रीसलूधौजी (६) श्रीनरसिंहदासजी (१३) श्रीअग्रदेवानुगामी (७)श्रीभगवानदासजी (शिष्य) श्रीखेमदासजी (८) श्रीरामभजन दृढव्रत धारण | (१४) श्रीखीचीजी करनेवाले श्रीदिवा- (१५) श्रीधर्मदासजी परमधीर (१६) श्रीलघुऊधौजी इत्यादि। (७२६) छप्पय । (११७) भरतखंड भूधर सुमेर टीलो लाहां की पद्धति प्रगट ॥ अंगज परमानंद दास जोगी जग जागै। खरतर, खेम, उदार ध्यान केंसौ हरिजन अनुरागै॥ सस्फुट त्याला शब्द लोहकर वंश उजागर । हरीदासं कपि प्रेम, सब नवधा के आगर ॥ अच्युत कुल से सदा, दासन तन दसधा अघट । भरतखंड भूधर सुमेर टीला लाहा की पद्धति प्रगट ॥ १५१॥(६३) वात्तिक तिलक । (१) भरतखंडरूपी सुमेरे पर्वत के टीला (शिखर) के समान श्री । "टीला" जी भक्त हुये॥ करजी