पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८५६

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८३७ Home n - IMMANARTMaruMPARANAMAM-IN-Himanavarria भक्तिसुधास्वाद तिलक। (२) उनके शिष्य श्री “लाहा" जी हुये, इनकी पद्धति कहिये शिष्य-परम्परा परम प्रकाशमान हुई। (३) अापके अंगज (पुत्र) श्रीपरमानन्ददासजी जगत् में विख्यात योगी हुये ॥ (४-७) अति उदार खरतरदासजी, खेमदासजी, ध्यानदासजी, केशौ- दासजी, इन सबों का श्रीहरिभक्तों में बड़ा ही अनुराग हुया । (E) सस्फुट प्रसिद्ध त्योला शब्द अर्थात् “त्योला" इति विख्यात लोहार जाति के वंश में जन्म लेकर उसको उजागर किया। (8) और हरीदासजी का कपि श्रीहनुमानजी में बड़ा प्रेम था, नवधा भक्ति में सब ही निपुथ हुये ॥ ये सब अपनी देह में दासता को धारण कर अच्युतकुल वैष्णवों की सेवा करते थे, इससे भगवत् की अनपायिनी प्रेमाभक्ति को प्राप्त हुये ॥ --- -- (१८५) श्रीकन्हरजी (श्रीविठ्ठलसुत)। (७२७) छप्पय । (११६) मधुपुरी महोछौ मंगलरूप “कान्हर” कैसौ को करै । चारि बरन आश्रम रंक राजा अन पावै। भक्तनि को बह मान विमुख कोऊ नहिं जावै।बीरी चन्दन बसन कृष्ण कीरतन बरखै। प्रभु के भूषन देयमहामन अतिसय हरखै॥ "बीठल" सुत विमल्यौ फिरै, दासचरण रज सिर धरै । मधुपुरी महोछौ मंगलरूप "कान्हर" कैसौ को करै ॥१५२॥ (६२) वात्तिक तिलक। मथुरापुरी में मंगलरूप महाउत्सव “श्रीकान्हरजी" के समान , और कौन कर सका है ? जिस उत्सव में चारो वर्ष चारो श्राश्रम के जन, राजा से रंक तक सबको सादर भोजन अन्न मिलता था।