पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८६२

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t uint H ow + + + + + भक्तिसुधास्वाद तिलक । ८४३ कार करने के लिये एक अद्वितीय पुत्र उत्पन्न किया। प्रभु के अमित महागुन गुप्त और भगवत्चरित्रों का सारांश जाननेवाले हुए। जाति के तुलाधार (बनिये)तो थे ही, इससे शास्त्रों की और सजनों की गम्भीर प्राशय देख के अनुमान से तोल लेते थे। वृन्दा. वन प्राप्ति होने का अपना पैज (प्रण), दमामा डंका बजाकर ले लिया, इससे श्रीराधावल्लभजी के भजन का प्रत्यक्ष प्रताप दिखा दिया। भगवद्भक्ति साधन में अति सुदृढ़ कलियुग में कामधेनु के समान गिने गये ॥ दो. "हरीदास कुल बनिक में, प्रेमभक्ति की खान । पुर काशी ढिग रहतही, बृन्दावन तज पान ॥" . (७३४) टीका । कवित्त । ( १०९) हरीदास बनिक, सो कासी दिग बास जाको, ताको यह पन तन यागौं ब्रजभूमहीं । नयोज्वर नाड़ी छीन, छोड़ि गए वैद तीन, बोल्यो वों प्रवीन "वृन्दावन रस झूमहीं ॥" बेटी चारि संतनिको दई "अंगीकार करो, घरो डोली माझ मोको ध्यान हग घूमहीं"। चले सावधान राधावल्लभको गान करे, करै अचिरज लोग परी गाँव धूम ही ॥ ५७६ ॥ (५१) वात्तिक तिलक। श्रीहरिदासजी बनिये काशीजी के समीप में वसते बड़े संतसेवी भक्त थे। आपका पन था कि "मैं वृन्दावन ही में शरीर छो..।" कालज्वर होने से नाड़ी छूट गई, दो तीन वैद भी छोड़के चले गये ।। इन परम प्रवीण ने कहा कि "मेरा मन वृन्दावन के प्रेमरस से झूम रहा है। चार बेटियाँ थीं, सज्जनों को देकर, प्रार्थना की कि “इनको अंगीकार कीजिये, और मुझे डोली में घर वृन्दावन को ले चलिये, मेरे नेत्र वहीं ध्यान से घूमते हैं।" दो० "वनप्रमोदके फिरत हैं मम आँखिन जे कुंज। हरिप्रसाद मैं फिरख कव ? तेइ कुंजन सुखपुंज ॥ १॥ नाड़ी छूट गई तो भी सावधानता से श्रीराधावल्लभजी (रूपकला)