पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८६३

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८४४ + 91 - de- श्रीभक्तमाल सटीक । का नाम गान करते चले, ग्राम में धूम पड़ गई, लोग श्राश्चर्य करने लगे कि "यह वृन्दावन कैसे पहुँच सका है। (७३५) टीका । कवित्त । (१०८) ____ आवतही मग माँझ छुटिगयो तन, पन साँचौ कियौ स्याम, वन प्रगट दिखाया है। श्राय दरसन कियो, इष्ट गुरु प्रेम भरि नेम पखौ पूरी, जाय चीरघाट न्हायों है ॥ पाछे आए लोग, सोग करत भरत नैन बैन सब कही, कही “ताही दिन आयौ है" भक्तिको प्रभाव यामें भाव और थानौ जिनि, बिन हरिकृपा यह कैसे जात पायौ है ॥५८०॥ (५०) वात्तिक तिलक । आप पाते थे, बीचही में शरीर छूट गया ॥ प्रभु ने पन सच्चा कर सबको प्रतीति कराने के लिये वैसा ही दिव्य दूसरा शरीर दिया उसीसे वृन्दावन में आकर श्रीराधावल्लभजी के और अपने गुरु गोसाई सुन्दरदासजी के, सप्रेम दर्शन करके, चीरघाट स्नान- कर, नेम पूरा किया। पीछे ले थानेवाले लोग नेत्रों में शोकजल भरे वृन्दावन में पाकर कहने लगे कि "अमुक दिन मार्ग में हरिदासजी का शरीर छूट गया, यहाँ नहीं पहुँचे ॥” - सुनके सुन्दरदासादि कहने लगे कि "उसी दिन तो भाकर श्रीराधा- वल्लभजी का हरिदास ने दर्शन किया है ॥ दो० "चीरघाट न्हावत दिख्यो, वृन्दावन नर नारि। कही सुयश सो ताहिकर, करहु हर्ष दुख गरि ॥" यह सुन सब लोगों को बड़ा ही हर्ष हुआ। भक्ति का प्रभाव ऐसा ही है। प्रभु अपने भक्तों का प्रण अवश्य पूर्ण करते हैं । इसमें कोई और भाव कुतर्क का न लावै कि "वह प्रेत होकर पाये होंगे।" वह प्रभु का दिया दिव्य ही शरीर था, बिना हरि की कृपा ऐसा नहीं होता। (१६०।१६१) श्रीगोपालभक्त श्रीविष्णुदास । (७३६ ) छप्पय । ( १०७ ) भक्ति भार जू. जुगल, धर्म धुरंधर जग विदित ॥ "बांबोली" "गोपाल गुननि गंभीर गुनारट । दच्छिन