पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८६४

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++ + + + + + ना - ME -pu +Part- भक्तिसुधास्वाद तिलक । ५४५ दिसि बिष्णुदासं गाँव “काशीर" भजनभट ॥ भक्तनिसों यह भाय भजे गुरुगोबिंद जैसे । तिलक दाम आधीन सुवर संतान प्रति तैसे। अच्युत कुल पन एकरस, निबह्यो ज्यौं श्रीमुख गदित। भक्ति भार जूडै जुगल, धर्म धुरंधर जग बिदित ॥ १५७॥ (५७) वात्तिक तिलक । ये युगल भक्त एक गुरु के शिष्य कर्म वचन मन से मिलके भक्तिरूपी भार को उठानेवाले भागवतधर्म-धुरंधर जगत् में विख्यात हुये। (१) काशीजी के समीप “बाबुलिश्रा" प्राम में बसनेवाले "श्रीगोपालभक्तजी" दिव्य गुणों से भरे हुये बड़े गम्भीर भगवद्गुणों को रटा करते थे। (२) दूसरे दक्षिणदिशि “काशीर” प्राम के निवासी "श्रीविष्णु,- दासजी" भगवद्धजन में बड़े सुभट हुये ।। दोनों महानुभावों का हरिभक्तों में यह भाव था कि जैसा श्रीनाभाजी स्वामी ने कहा है "भक्त भक्ति भगवन्त गुरु चतुर नाम बघु एक ऐसाही गुरु गोविन्द के समान जानके संतसेवा करते थे, और जैसा श्रेष्ठ संतों को मानते थे वैसा ही कंठी तिलकमात्र धारण करनेवालों के भी आधीन रहते थे। अच्युत कुल का प्रेमपण दोनों भक्तों का, जैसा भगवान ने श्रीमुख से कहा है कि "मेरे भक्त को मुझसे अधिक मान,” इसी प्रकार एक रस निबह गया ॥ (७३७) टीका । कवित्त । (१०६) रहै गुरुभाई दोऊ, भाई साधुसेवा हिये, ऐसे सुखदाई, नई रीति लै चलाइये । जायें जा महोछी मैं बुलाए हुलसाए अंग संग गाड़ी सामा सो भडारी दै मिलाइयै ।। याको तातपर्य सत घटतीन सही जात, बात । वे न जाने, सुखमानै मनभाइयै । बड़े गुरु सिद्ध जग महिमा प्रसिद्ध वाले विने कर जोरि सोई कहिकै सुनाइये ॥ ५८१ ॥ (४६)