पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८६९

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श्रीभक्तमाल सटीक । वाले के पुत्र गोपालदासजी के पुत्र नाथभट्टजी रागाऽनुगा भक्ति के स्थान ही हुये। शृङ्गाररस को "रसराशि" इसलिये कहा करते हैं कि इसमें पाँचो रसों की राशि होती है अर्थात् इस रस के उपासक में सब रसों की बातें इकट्टी ही पाई जाती हैं। (१६३) श्रीकरमैतीजी। (७४३) छप्पय । (१००) कठिन काल कलिजुग्ग में, "करमैती" निकलंक रही ॥ नस्वर पति रति त्यागि, कृष्णपद सो रति जोरी।सबै जगत की फांसि तरकि, तिनुका ज्यों तोरी। निर्मल कुल कांथड्याधन्नि परसा जिहिं जाई । विदित वृन्दाबन बास संत मुख करत बड़ाई ॥ संसारस्वाद- सुख बांत करि, फेर नहीं तिन तन चही । कठिन काल कलिजुग्ग में, करमैती"निष्कलंक रही ॥१६०॥(५४) दो सबै कहत “हम राम के", सबहिं पास, पिय ! तोरि। ___ मैं विनवौं पिय ! तुम कहो, रूपकला है मोरि ।।" 'बातिक तिलक। कलियुग ऐसे कठिन काल में जन्म लेकर श्रीकरमैतीजी कलियुग के अघों से वची और निष्कलंक ही रहीं। संसारी मिथ्या पति की रति को त्यागकर, श्रीकृष्णचरणों में दृढ़ रति की । “वसी श्याम मूरति हिये वादयो प्रेम अपार।"जगत् के सव संबंधियों की प्रीतिरूपी फाँसी तर्ककर, तृणसमान तोड़ डाली। निर्मल “कांथडया" कुल धन्य है और पिता "परशुरामजी" धन्य हैं कि जिनके ऐसी हरिभक्ता पुत्री उत्पन्न हुई। विख्यात वृन्दावनवास किया, जिसकी बड़ाई सब संत अपने मुख स . करते थे, संसारस्वाद विषयसुख को वमन करके, फिर उन सुखों की भार । देखा भी नहीं॥.