पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८७६

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८५७ Halkartime भक्तिसुधास्वाद तिलक । भक्ति दृढ़ अनत न चितयौ ॥ “गौतमी तंत्र" उर ध्यान धरि, तन त्याग्यो मंडल सरद । गोबिंदचंद गुन ग्रथन को “खर्गसेन"बानी बिसद ॥१६१ ॥ (५३) वात्तिक तिलक । श्रीगोविन्दचन्द्रजी के गुणों को प्रथित करने के लिये “खर्गसेन (खड्गसेन)" जी की बानी बड़ी ही उज्ज्वल थी। गोपिका और ग्वालों के माता पिताओं के नाम ग्रंथों से ढूँढ़ २ कर एक ग्रंथ बनाया, और दानकेलि लीला, दीपमालिका चरित्र, चड़ी बुद्धिमानी से रचना किया। श्रीगोपालजी और उनके सखा सखियों की लीला वर्णन ही में अपना सम्पूर्ण काल बिताया। जाति के कायस्थ, अपने कुलका उद्धार करनेवाले,हद भक्ति को छोड़ आपने किसी ओर देखा भी नहीं॥ "गौतमी तंत्र” की रीति से ध्यान धर, शरद रासमंडल में, देह को तज नित्य रासमंडल में प्राप्त हुये। दो० “खरगसेन के प्रेम की, बात कही नहिं जात । लिखत ललित लीला करत, गए पान तजि गात ॥" (७५३) टीका । कवित्त । (१९०) ग्वालियर बास, सदा रास को समाज करें, सरद उजारी, अति रंग चढ़यों भारी है। भावकी बदनि दृगरूप की चदनि ततईई की रदान जोरी सुन्दर निहारी है। खेलत में जाय मिले त्यागि तन भावना सो झेलत अपार सुख, रीझि देहवारी है। प्रेमकी सचाई ताकी रीति ले दिखाई, भई भावकनि सरसाई, वात लागी प्यारी है।॥ ५६३ ॥ (३७) वात्तिक तिलक । कहते हैं कि श्रीहितहरिवंशजी के संप्रदाययुक्त थे। श्राप ग्वालियर में बसते सदा रासका समाज करते थे। एक समय शरद उजारी में रास होता था उसमें प्रेमरंग बहुत बढ़ गया नृत्य में परस्पर भाव की बढ़न नेत्रों में रूप की चढ़न युक्त "ताताई" मादि गान करनेवाली श्यामा श्यामकी सुन्दर जोड़ी को निरख