पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीभक्तमाल सटीक । landana- भावना से मिलके, अपार सुख को पास हो, रीझ के देह को नेवछावर कर, तज नित्यकेलि में जा मिले॥ दो “चढ़िक काम तुरंग पर; चलिबों पावक माहि। प्रेमपंथ अतिशय कठिन, सब, कोउ निवहत नाहिं ॥१॥" यह प्रेम की सचाई की रीति दिखाई दी, जिसको देख सुनके भावुकों के मन में प्रति सरसता हुई। यह बात मुझे बड़ी ही प्यारी लगी॥ - :(१९५) श्रीगंगाग्वालजी। । (७५४) छप्पय । (८९) सखा श्याम मनभावतो, "गंगग्वाल" गंभीर मति। स्यामाजू की सखी नाम आगमबिधि पायौ ग्वाल गाय बजगाँव एथक नीके करि गायौ ॥ कृष्ण केलि सुखसिंधु अघट उर अंतर धरई ॥ ता रस में नित मगन असद आलाप न करई॥ ब्रजबास आस,"ब्रजनाथ"गुरुभक्त, चरण रज अननि गति सखा श्याम मन भावतो, "गंग- ग्वालगंभीर मतिः ॥ १६२ ॥ (५२) 'वात्तिक तिलक । "पियप्यारी को जस कह्यौ, रागरण सों गाइ॥" श्रीश्यामसुन्दरजी के मन भावते सखा श्रीगंगग्वालजी बड़ी गंभीर बुद्धिवाले थे। श्रीराधिकाजी की सखियों के नाम आगम ग्रंथों से खोज के, और गायों के नाम, ब्रजग्रामों के नाम, पृथक २ अापने भले प्रकार गान किये। श्रीकृष्णचन्द्रजी की केलिसुखसिंधु एकरस हृदय के अन्तर धारण कर उसी के रस में सदा निमग्न रहते, असत वार्ता कभी नहीं करते थे श्रीब्रज में चसके, ब्रजराज ही की आशा रखते थे, और अपने गुरु श्रीव्रजनाथजी की चरणरज के अनन्य गति भक्त थे। सम्भवत. श्रीवल्लभाचार्यजी के प्रपौत्र, "श्रीजनाथजी" ।।