पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८८

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६९ HIROM+ ++लान्वनीuna-Brand NEMIERHIRaipuINMAM .............. भक्तिसुधास्वाद तिलक । ...............६९ भक्त से छल करने के कारण स्वयं श्रापने (उनके द्वारपाल होकर) उस (वामन) रूप से नित्यशः उनको दर्शन देना स्वीकार कर लिया । -*(6)--- (११) श्रीशुकजी। श्लो निगमकल्पतरोगलितं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । पिबत भागवतं रसमालयं मुहरहो रसिका मुवि भावकाः॥ परमहंस श्रीशुकदेवजी की आदि अवस्था की कथा कुछ दूसरे पृष्ठ में लिख भी पाए हैं। आप महर्षि श्रीव्यास भगवान के पुत्र हैं। आपही ने श्रीमद्भागवत सुनाके श्रीपरीक्षित महाराज को एक ही सप्ताहमात्र में परमधाम को पहुंचा दिया। किसी समय श्रीपार्वतीजी ने श्रीशिवजी से श्रीरामनाममाहात्म्य के तत्त्वज्ञान का गुप्त रहस्य सुनना चाहा, तब श्रीशङ्करजी ने अपनी प्राण- प्रिया की यह अनोखी अभिलाषा देखकर (जसे प्रभु की कृपा ने उनके अन्तःकरण से अन्य साधनों की महिमा का अभाव कर दिया था) प्रथम उस शुभस्थान को अपर जीवों से शून्य करके उसके अनन्तर अपना उपदेश प्रारम्भ किया। श्रीगिरिजा जी तो नींदवश हो गई. परन्तु हरिइच्छा से शुक पक्षी का एक बच्चा वहाँ रह गया था, सो श्री- रामनाममाहात्म्य श्रवण के प्रभाव से वही बच्चा परम तत्त्ववेत्ता तथा अमर होकर "हूं हूं" कार भरता रहा, महेश्वर ने यह जानकर शीघ्र उसको मारने की इच्छा की । भागकर उसने श्रीव्यासजी की धर्मपत्नी के पेट में जा शरण लिया ॥ (१२) श्रीधर्मराजजी। और (१३) श्रीअजामेलजी। (३०) "अजामिल" जी की टीका । कवित्त । (८१३) घखो पितु मात नाम “अजामेल", साँचो भयो, भयो अजामेल, तिया छूटी शुभजात की। कियो मद पान,सो सयान गहि दूरि डाखो,गाखो तनु वाही सों,जो कीन्हो लैकै पातको । करि परिहास काहू दुष्ट ने पठाए साधु, अाए घर,देखि बुद्धि श्राइ गई सातकी । सेवा करि सावधान, सन्तन रिझाइ लियो, “नारायण" नाम घखो गर्भ बाल पातकी ॥२३॥(६०६)