पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८९

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७० श्रीभक्तमाल सटीक। वातिक तिलक। ये ब्राह्मण के पुत्र थे, इनका नाम माता पिता ने अजामेल रक्खा था। सो वह अजामेल सच्चा ही हो गया, अर्थात् अजा (माया, विद्या) की अन्त सीमा शूद्री वेश्यामय वह हो गया, और ब्राह्मयज्ञाति शुभ धर्मपत्नी को छोड़ दिया। इस कार्य का कारण अब टीकाकार बताते हैं कि "कियो मद पान" अर्थात् भदपान करते ही सात्त्विकी बुद्धि ने अन्तःकरण को परित्याग किया उसके पयान करते ही तामसी दशा प्रकट हुई, तमोगुण के करतब होने लगे, पिता के रक्खे हुए नाम ने अपनी सचाई दिखाई ।। सत्यसंकल्प प्रभु के अनुरागियों के साथ लौकिक परिहास का भी कैसा अनोखा फल होता है सो देखिये।। किसी खल ने हँसी से सन्तों को भेज दिया (कि अजामिल बड़ा साधुसेवी हरिभक्त है उसके घर जावो) सन्त चले चले अजामिल के घर आये, उनके दर्शन से उसकी बुद्धि श्रीसीतारामकृपा से सात्त्विकी हो पाई, अर्थात् सन्तन में श्रद्धा आ गई । और सावधानता से सेवा करके साधुओं को रिझाय लिया। जब सन्त चलने लगे तब उस गर्भ- वती अपनी दासी को सन्तनके चरण पर गिरायके बोला कि इस गर्भवती को असीस दिया जाय । सन्त ने प्रसन्न होके कहा कि श्रीराम- कृपा से "इसके पुत्र ही होगा, सो उसका तू 'नारायण' नाम रखना"। साधु तो ऐसा कहके चले गए, कालान्तर में उसके पुत्र जन्मा और कुछ काल का हुआ। (३१) टीका । कवित्त । (८१२) प्राइ गयो काल, मोहजाल में लपटि रह्यो, महाविकराल यमदूत सों दिखाइये । वोही सुत “नारायण"नाम जो कृपा के दियो, लियो सो पुकारि सुर भारत सुनाइये ॥ सुनत ही पारषद आए वोही ठौर दौर, तोरि डारे पास कह्यो धर्म समुभाइये । हरि ले विडारे जाइ पति पै पुकारे कहि "सुनो वज्रमारे ! मत जावो हरि गाइये ॥ २४॥ (६०५). स्त्री पुत्र के स्नेहरूप महामोहजाल में लपटा पड़ा था, इतने में उसका भरणकाल भा गया । महाभयानक यमदूत मुगदर (मुद्गर)