पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८८३

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ragwand E -MAIN ८६४ श्रीभक्तमाल सटीक । आपके भाग्य की बड़ाई प्रशंसा विदुष सज्जनों ने किया और किसी ने लिखा है कि श्रीप्रयागदासजी ने दो देह धारण कर दोनों उत्सवों में जाके ध्वजा और कलश चढ़ाया । जैसा हो सो विज्ञ लोग जानें, दोनों हो सका है। ___ "खेलै राम रंगीलो फागरी आज रंगीलो फागरी । चन्द्रकला विमलादि रंगीली प्यारी रंगीली नागरी ॥ कनक महल भजि कुंज २ प्रति उमगि रह्यो अनुरागरी । युगल प्रिया अधिकार सदा के अग्रस्वामि पद लागरी॥" (२००) श्रीप्रेमनिधिजी। (७६०) छप्पय । (८३) प्रगट अमित गुन "प्रेमनिधि," धन्य विप्र जे नाम . धखौ ॥ सुन्दर सील सुभाव, मधुर बानी, मंगल करु। भक्तनिको सुखदैन फल्यौ बहुधा दसधा तरु॥सदन बसत निर्वद, सारमुक, जगत असंगी।सदाचार उद्धार नेम हरिदास प्रसंगी ॥दया दृष्टि बसि "आगरें" कथा लोग पावन कयौ। प्रगट अमित गुन "प्रेमनिधि," धन्य विप्रजे नाम धखौ ॥ १६७॥(४७) बात्तिक तिलक। श्री “प्रेमनिधि" जी में अपार प्रेम गुण प्रगट था, वास्तव में आप प्रेम के निधि ही थे इससे जिस ब्राह्मण ने आपका यह नाम रक्खा था सो धन्य है । प्रेम के साथ ही और भी गुण आप में थे, आप सुन्दर शील- वान् स्वभावयुक्त, और मंगल करनेवाली मधुर वाणी आपकी परमा- नन्ददा थी। भगवद्भक्तों को सुख देनेवाले प्रेम लक्षणा भक्तिरूपी बहुत फलों से युक्त मानो कल्पवृक्ष थे। घर रहकर भी वैराग्ययुक्त, सारनाही, जगत् से असंग थे॥ जाति के ब्राह्मण सदाचार नियम में तत्पर, अति उदार हरि-