पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८८५

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+ + + + + + ++ + Admipmaramanan d धीभक्तमाल सटीक। कै माखन ? कै दधि, हरै ? हरै कि सखि चित मोरे ! ॥ २॥" मोहित हो आपने विचारा कि "राम कृपा से इसी के पीछे पीछे चला चलूँ ॥"जैसे धन धाम भाम श्याम ज़ के लागे काम, होत अभिराम, . दुखग्राम नाशे मन की जैसे रसिकाई-ो-अनन्यताई-बात मुख शोभित है क्रियामान-ज्ञानवान-जन की ॥" (७६२) टीका । कवित्त । (८१) जानी यहै बात पहुँचाए कहूँ जात यह अबही विलात भले चैन को घरी है । जमुना लो प्रायो, अचरज सा लगायौ मन, तन अन्हवायों मति वाही रूप हरी है ॥ घट भरि धखौ सीस, पट वह प्राय गयो, पान गयो घर, नहीं देखी, कहा करी है। लगी चटपटी अटपटी न सममि परै, भटभटी भई नई, नैन नीर भरी है ॥ ५६६ ॥(३४) वात्तिक तिलक आप यह समझे कि “यह किसी को पहुँचाकर लौटा जाता है, जहाँ इसका घर होगा वहाँ तो चलाही जावेगा भला जे क्षण उजाला है तब ही तक सुख सही ।" मनमोहन प्रकाशयुत (मशालची श्रीयमुनाजी तक आया, आपने मन में आश्चर्य मान तनसे स्नान किया परन्तु आपकी बुद्धि को उस सुकुमार के रूप ने हर लिया। स्नान कर, जल भर, घड़ा माथे पर धर, चले ही कि झट वही आकर आगे आगे चला, अपने घर श्राप मा पहुँचे कि वह अन्तर्धान हो गया, उसको न देखा । न जाने कहाँ गया ? कुछ पता न चला ॥ अब तो मन और नेत्रों में उसके देखने की चटपटी पड़ी, यह अटपटी बात समझ में नहीं आती, नई भटभटी भई कि यह कहाँ गया ? नेत्र' बिचारे जल की झड़ी करने लगे। चौपाई। "वरसै मघा झकोरि झकोरि । मुर दुउ नैन चुबै जनु ओरी !" (पद्मावत-मलिकमुहम्मद जायसी)